उधम सिंह--जालियांवाला बाग-कांड के प्रतिरोधी
(पुण्य तिथि 31 जुलाई सन 1940 ई0)
उधम सिंह का जन्म ग्राम सुनाम, जिला संगरूर, पंजाब में 26 दिसंबर 1811 को सरदार टहसिंह के घर में हुआ था। मात्र 2 वर्ष की अवस्था में इनकी मां का और 7 साल का होने पर पिता का देहांत हो गया। ऐसी अवस्था में किसी परिवारजन ने इनकी सुध नहीं ली। गली-गली भटकने के बाद अंततः उन्होंने अपने छोटे भाई के साथ अमृतसर की पुतलीघर में शरण ली। यहां एक समाजसेवी ने इनकी सहायता की।
19 वर्ष की तरुण अवस्था में उधम सिंह ने 13 अप्रैल, 1911 को वैशाली के पर्व पर जालियांवाला बाग, अमृतसर में हुए नरसंहार को अपनी आंखों से देखा। सब के जाने के बाद रात में वे वहां गए और रक्त रंजित मिट्टी माथे से लगाकर इस कांड के खलनायकों हो बदला लेने की प्रतिज्ञा की। कुछ दिन उन्होंने अमृतसर में एक दुकान भी चलाई। उसके पलक पर उन्होंने अपना नाम 'राम मोहम्मद सिंह आजाद' लिखवाया था। इससे स्पष्ट है कि वे स्वतंत्रा के लिए सभी धर्मों का सहयोग चाहते थे।
उधम सिंह को सदा अपना संकल्प याद रहता था। उसे पूरा करने हेतु वे अफ्रीका से अमेरिका होते हुए 1923 में इंग्लैंड पहुंच गये। वहां क्रांतिकारियों से उनका संपर्क हुआ। 1928 में भगत सिंह के कहने पर भारत वापस आ गए, पर लाहौर में उन्हें शस्त्र अधिनियम के उल्लंघन के आरोप में पकड़ कर 4 साल की सजा दी गई। इसके बाद वे फिर इंग्लैंड चले गए।
13 मार्च 1940 को वह शुभ दिन आ गया, जिस दिन उधम सिंह को अपना संकल्प पूरा करने का अवसर मिला। इंग्लैंड की राजधानी लंदन के कैक्कस्टन हाल में एक सभा होने वाली थी। इसमें जालियांवाला बाग कांड के दो खलनायक सर माइकल ओ डायर तथा भारत के तत्कालीन सेक्रेटरी ऑफ स्टेट लार्ड जेेेटलैण्ड आने वाले थे। उधम सिंह चुपचाप मंच से कुछ दूरी पर जाकर बैठ गए और उचित समय की प्रतीक्षा करने लगे।
सर माइकल ओ डायर ने अपने भाषण में भारत के विरुद्ध बहुत विषवमन किया। जैसे ही उसने अपना भाषण पूरा किया, उधम सिंह ने खड़े होकर उसके सीने पर गोली दाग दी। डायर वहीं ढेर हो गया। अब लॉर्ड जेटलैंड की बारी थी, पर उसकी किस्मत अच्छी थी। वह घायल होकर ही रह गया सभा में भगदड़ मच गई। उधम सिंह चाहते तो भाग सकते थे, पर वे सीना तान कर खड़े रहे और स्वयं को गिरफ्तार करा दिया।
न्यायालय ने वीर उधमसिंह ने आरोपों को स्वीकारते हुए स्पष्ट कहा कि मैं पिछले 21 साल से प्रतिशोध की आग में जल रहा था। डायर और जेटलैंड मेरे देश की आत्मा को कुचलना चाहते थे। इसका विरोध करना मेरा कर्तव्य था। इससे बढ़कर मेरा सौभाग्य क्या होगा कि मैं अपनी मातृभूमि के लिए मर रहा हू। न्यायालय के आदेश पर उधम सिंह को 31 जुलाई 1940 को पेंटनविला जेल में फांसी दे दी गई।मरते समय उनके चेहरे पर मधुर मुस्कान तैर रही थी। उन्होंने कहा -- 10 साल पहले मेरा प्यारा दोस्त भगत सिंह मुझे अकेला छोड़कर फांसी चढ़ गया था। अब मैं उससे वहां जाकर मिलूंगा। वह मेरी प्रतीक्षा कर रहा होगा।
स्वतंत्रता प्राप्ति के 27 साल बाद 19 जुलाई, 1974 को उनके भस्मावशेषों को भारत लाया गया। 5 दिन जनता के दर्शनार्थ रखकर ससम्मान हरिद्वार में गंगाजल में प्रवाहित कर दिया गया।
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