निर्माणों के पावन युग में

 


निर्माणों के पावन युग में, हम चरित्र निर्माण न भूलें।स्वार्थ साधना की आंधी में, वसुधा का कल्याण ना भूलें ।।ध्रु।।

माना अगम अगाध सिंधु है, संघर्षों का पार नहीं है।
किंतु डूबना मझधारों में, साहस को स्वीकार नहीं है।
जटिल समस्या सुलझाने को, नूतन अनुसंधान ना भूले।
निर्माणों के पावन युग में, हम चरित्र निर्माण न भूलें।
स्वार्थ साधना की आंधी में, वसुधा का कल्याण ना भूलें ।।१।।

शील विनय आदर्श श्रेष्ठता, तार बिना झंकार नहीं है। शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी, यदि नैतिक आधार नहीं है।
कीर्ति कौमुदी की गरिमा में, संस्कृति का सम्मान न भूलें।
निर्माणों के पावन युग में, हम चरित्र निर्माण न भूलें।
स्वार्थ साधना की आंधी में, वसुधा का कल्याण ना भूलें ।।२।।

अविष्कारों की कृतियों में यदि, मानव का प्यार नहीं है।
सृजनहीन विज्ञान व्यर्थ है, प्राणी का उपकार नहीं है।
भौतिकता के उत्थानो में, जीवन का उत्थान न भूले।
निर्माणों के पावन युग में, हम चरित्र निर्माण न भूलें।
स्वार्थ साधना की आंधी में, वसुधा का कल्याण ना भूलें
।।३।।



 

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