तनिक विचार तो करो ..
कुछ मित्रों ने अभी से आंग्ल नव वर्ष की अग्रिम शुभकामना की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दिया है। इस परिप्रेक्ष्य मे मैं आप सब के समक्ष राष्ट्रकवि श्रद्धेय रामधारी सिंह "दिनकर" जी की कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
_ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं_
_है अपना ये त्यौहार नहीं_
_है अपनी ये तो रीत नहीं_
_है अपना ये व्यवहार नहीं_
_धरा ठिठुरती है सर्दी से_
_आकाश में कोहरा गहरा है_
_बाग़ बाज़ारों की सरहद पर_
_सर्द हवा का पहरा है_
_सूना है प्रकृति का आँगन_
_कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं_
_हर कोई है घर में दुबका हुआ_
_नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं_
_चंद मास अभी इंतज़ार करो_
_निज मन में तनिक विचार करो_
_नये साल नया कुछ हो तो सही_
_क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही_
_उल्लास मंद है जन -मन का_
_आयी है अभी बहार नहीं_
_ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं_
_है अपना ये त्यौहार नहीं_
_ये धुंध कुहासा छंटने दो_
_रातों का राज्य सिमटने दो_
_प्रकृति का रूप निखरने दो_
_फागुन का रंग बिखरने दो_
_प्रकृति दुल्हन का रूप धार_
_जब स्नेह–सुधा बरसायेगी_
_शस्य–श्यामला धरती माता_
_घर -घर खुशहाली लायेगी_
_तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि_
_नव वर्ष मनाया जायेगा_
_आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर_
_जय गान सुनाया जायेगा*_
_युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध_
_नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध_
_आर्यों की कीर्ति सदा -सदा_
_नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा_
_अनमोल विरासत के धनिकों को_
_चाहिये कोई उधार नहीं_
_ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं_
_है अपना ये त्यौहार नहीं_
_है अपनी ये तो रीत नहीं_
_है अपना ये त्यौहार नहीं_
✍🏻राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर

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