राष्ट्रभक्ति ले हृदय मे हो खडा यदि देश सारा

राष्ट्रभक्ति ले हृदय मे हो खडा यदि देश सारा
संकटो पर मात कर यह राष्ट्र विजयी हो हमारा ॥
क्या कभी किसने सुना है सूर्य छिपता तिमिर भय से
क्या कभी सरिता रुकी है बांध से बन पर्वतों से
जो न रुकते मार्ग चलते चीर कर सब संकटोंको
वर्ण करती कीर्ती उनको तोड कर सब असुर दल को
ध्येय-मन्दिर के पथिक को कन्टकों का ही सहारा ॥
हम न रुकने चले है सूर्य के यदि पुत्र है तो
हम न हटने को चले है सरित की यदि प्रेरणा को
चरण अंगद ने रखा है आ उसे कोइ हटाए
बहकता ज्वालामुखी यह आ उसे कोइ बुझाए
मृत्यु की पी कर सुधा हम चल पडेंगे ले दुधारा ॥
ज्ञान के विज्ञान के भी क्षेत्र मे हम बढ पडेंगे
नील नभ के रूप के नव अर्थ भी हम कर सकेंगे
भोग के वातावरण मे त्याग का संदेश देंगे
त्रास के घन बादलोंसे सौख्य की वर्षा करेंगे
स्वप्न यह साकार करने सन्घठित हो हिन्दु सारा ॥

टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
गीत की पहली दो पंक्तियां प्रदीप सिंह, IAS, ने राष्ट्रपति महोदया के समक्ष, अपने सम्बोधन मे प्रयोग की

दिनेश गुप्ता