शहरी भारत में किसान



         भारत संरचनात्मक दृष्टि से गाँवों का देश है। और सभी ग्रामीण समुदायों में अधिकतर मात्रा में कृषि कार्य किया जाता है। इसीलिए भारत को कृषि प्रधान देश की संज्ञा भी दी जाती है। लगभग 70% भारतीय लोग किसान हैं और वे भारत देश की रीढ़ की हड्डी के समान है। 29-30 नवंबर को राजधानी दिल्ली में हजारों किसानों ने रामलीला मैदान की रैली  की और फिर संसद ओर मार्च किया था। दो दिनों के इस 'किसान मुक्ति मार्च' का आयोजन 'ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमिटी' ने किया था, जिसमें 200 से अधिक छोटे-बड़े किसान संगठन शामिल है। राजधानी में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने पहुंचे किसानों ने कृषि क्षेत्र के बढ़ते संकट पर चर्चा के लिए संसद का 21 दिन का विशेष सत्र बुलाने की मांग की थी। सरकार की गलत किसान नीति के परिणाम स्वरुप किसान कर्ज में डूब रहा है। किसान एक बार में कर्ज से मुक्ति चाहता है और यही समझाने सरकार के पास दिल्ली आया था। प्रधानमंत्री ने किसानों के लिए फसल बीमा की घोषणा पर जो अरबो रुपये प्रचार में खर्च किया, उससे किसानों को लाभ नहीं मिला। बल्कि विदेशी बीमा कंपनी वाले किसानों को लूट कर चल दिए। स्पष्ट है कि बीमा पॉलिसी में सुधार की आवश्यकता है और किस तरह किसान फसल का बीमा कराएं इस पर किसानों के साथ चर्चा करके जागरूकता जानकारी बांटने की आवश्यकता है।
           आजकल सोशल मीडिया के माध्यम से एक जुमला चर्चा में है कि सरकारी कर्मचारी सेवानिवृत्त होता है तो उसे पेंशन मिलता है, चुने हुए जनप्रतिनिधियों को पेंशन मिलता है तो बुजुर्ग किसानों को भी पेंशन मिलना चाहिए क्योंकि किसान किशोरावस्था से लेकर पूरी जवानी धूप ठंड में अनाज उगाने के लिए हड्डी-तोड़ मेहनत करता है बुढ़ापा आने पर किसी का भी शरीर साथ नहीं देता है। ऐसे में जीवन के अंतिम पड़ाव पर पेंशन की महती आवश्यकता होती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत गहरे कृषि संकट से जूझ रहा है। लेकिन ऐसा लगता है कि देश का पढ़ा-लिखा कामकाजी वर्ग जो शहरों में रहता है, उसको इसकी फिक्र नहीं है जबकि कृषि संकट की मार अंततः सभी पर पड़नी है। 
           कृषि उत्पादों की पैदावार बढ़ने के बावजूद छोटे और मझोले किसानों की आय सिमटती जा रही है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के उल्लेखनीय तरीकों से वृद्धि करने के बावजूद लोगों को ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार नहीं मिल रहा है जबकि कृषि क्षेत्र रोजगार का सबसे बड़ा जरिया है जो रोजगार पैदा करने की अपनी क्षमता को खोता जा रहा है। खेती छोड़ कर जीवन यापन के लिए दूसरे तरीके अपनाने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। मांग के अनुरूप रोजगार सृजन करने की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की क्षमता नकारात्मक दिशा में है। वहीं ग्रामीण क्षेत्र के गैर खेतिहर क्षेत्र उन लोगों को रोजगार देने में सक्षम नहीं है जो लोग खेती छोड़ रहे हैं ।कृषि क्षेत्र पर निकट भविष्य मे पड़ने वाले  इस संकट के कारण जल्द ही शहरी भारत पर दबाव पड़ेगा। इसका हम सबको मिलकर मुकाबला करना होगा। शहरी क्षेत्र पर यह दबाव बहुआयामी होगा जिसमे सर्वप्रथम खेती किसानी करने वाले किसान खेती कार्य छोड़कर आएंगे तो खेती का नुकसान होगा। दूसरे शहरों में आकर  और रोजगार में हिस्सेदारी बटाएंगे तो शहर में रोजगार संघर्ष उत्पन्न होगा और रोजगार में कमी आएगी।
           किसानों की मांग मुफ्त बिजली और पानी नहीं है बल्कि बिजली की निर्बाध आपूर्ति है जिसके लिए है वे भुगतान करने के लिए तैयार है। पंजाब जैसे राज्य में पहली बार में हरित क्रांति से किसानों को बहुत मदद मिली लेकिन कम कीमतों में बंपर फसलों के उपज के कारण उनके काम में बाधाओं ने आना शुरू कर दिया। भारतीय किसानों की हालत में सुधार किया जाना चाहिए। उन्हें खेती का आधुनिक विधि सिखाया जाना चाहिए और उन्हे साक्षर बनाया जाना चाहिए। फसल चक्र प्रणाली और अनुबंध फसल प्रणाली किसानों को सिखाए जाने की जरूरत है, जिससे किसान सही दिशा में आगे बढ़े और लंबे समय तक किसानी करने में सक्षम हो, क्योंकि भारत का भविष्य किसानों के कल्याण पर ही निर्भर करता है।

टिप्पणियाँ

Geetsangham ने कहा…
भारत का भविष्य उज्ज्वल है।