मन समर्पित तन समर्पित


मन समर्पित तन समर्पित
मन समर्पित तन समर्पित और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ मातृ-भू तुझको अभी कुछ और भी दूँ ॥
माँ तुम्हारा ऋण बहुत है मैं अकिंचन
किन्तु इतना कर रहा फिर भी निवेदन
थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब
स्वीकार कर लेना दयाकर यह समर्पण
गान अर्पित प्राण अर्पित रक्त का कण-कण समर्पित ॥१॥
माँज दो तलवार को लाओ न देरी
बाँध दो कसकर कमर पर ढाल मेरी
भाल पर मल दो चरण की धूलि थोड़ी
शीष पर आशीष की छाया घनेरी
स्वप्न अर्पित प्रश्न अर्पित आयु का क्षण-क्षण समर्पित ॥२॥
तोड़ता हूँ मोह का बन्धन क्षमा दो
गाँव मेरे व्दार घर आँगन क्षमा दो
आज सीधे हाथ में तलवार दे दो
और बाएँ हाथ में ध्वज को थमा दो
ये सुमन लो ये चमन लो नीड़ का तृण-तृण समर्पित ॥३॥

टिप्पणियाँ

Adish (आदीश) Kumar Jain ने कहा…
इस मातृ वंदना के साथ जुड़ा मेरा भावनात्मक किस्सा भी पढ़ें : संस्कार भारती के संगीत विधा के राष्ट्रीय सह महासचिव डॉ धन्नूलाल गौतम पूर्व महापौर झांसी के साथ यह मातृ वंदना "मन समर्पित, तन समर्पित, और यह जीवन समर्पित...... का 17.6.2017 आज़ाद भवन में मैनें गायन किया था । अवसर था ..आज़ाद भवन में महारानी लक्ष्मीबाई बलिदान दिवस का आयोजन। श्री रामावतार त्यागी लिखित यह गीत मेरे पिता स्व. डॉ बाहुबली कुमार जैन (उन्होंने 2 वर्ष RSS की ओटीसी ट्रेनिंग भी की थी) यह उनका प्रिय गीत था और वो मुझे बचपन में कहते थे कि डॉ धन्नू का गीत सुनाओ, और में उन्हें सुनाता था। जब डॉ धन्नूलाल के 17.6.2017 आज़ाद भवन में पुरस्कृत करने की बात हुई तब तक मैं उनसे नहीं मिला था, और जानता भी नहीं था, फिर वो दिल्ली आए तो फ़ोन आया, बोले आदीश तुमाये पापा को हमसें भोत स्नेह थो, वे हमसें एक गीत बार बार सुनत हते... इतना सुनते ही दिमाग की खिड़कियां खुलीं कि ये वही डॉ धन्नू हैं.. मैंनें उनसे कहा अब गीत नैं बताओ हम सुना रये और मैंने फोन पर कुछ पंक्तियां गायीं, उन्होंने भी साथ गाया, मैंनें निवेदन किया कि आप कार्यक्रम में मातृ वंदना इसी गीत से करें, उन्होनें स्वीकृति दे दी, फिर दूसरा निवेदन था कि मैं भी साथ में सुर मिलाउगा, उन्होंने स्वीकृति दी किन्तु शंकित थे क्योंकि मेरी धुन उनकी धुन से फर्क थी, किन्तु गायन के बाद उन्हीने पीठ थपथपा दी कि "तुमनें सुर ठीक मिला लयो" सो मेरे लिए एक बहुत सुखद अनुभव रहा।
Unknown ने कहा…
Mera ye gaane sun k romte khade ho jate jai
Unknown ने कहा…
मेरे हृदय की गहराइयों तक पहुंचा हुआ यह गीत है
इस गीत के रचयिता को कोटि कोटि वंदन
संघ के हर स्वयंसेवक के लिए प्रेरणा का स्रोत है
वास्तव में मातृभूमि का ऋण कभी नहीं चुकाया जा सकता
सभी राष्ट्र भक्तों को सादर नमस्कार
गीतसंघम ने कहा…
धन्यवाद🙏🙏