हे ऋषिवर शत शत वंदन

हे ऋषिवर शत शत वंदन


हे ऋषिवर शत शत वंदन
हे ऋषिवर शत शत वंदन
हे ऋषिवर शत शत वंदन ॥धृ॥

हे महानतम संन्यासीहिन्दुराष्ट्र के अभिलाषी 
जग कल्याणमयी संस्कृति काकरते थे पल-पल चिंतन ॥१॥

हे विराट हे स्नेहागारहुए ध्येय से एकाकार 
गरलपान अमृत छलकायाइस युग में सागर मंथन ॥२॥ 

हे परिव्राजक राष्ट्रपुजारीतुमसे षडरिपु शक्ति हारी 
कोटि कोटि नवयुवक बढ़ रहेकर न्योछावर निज यौवन ॥३॥

हे अभिनव अनथक योगीनिश्चित पूर्ण विजय होगी 
अखंड मान वैभव ले प्रगटेदसों दिशा से यज्ञ सुगंध ॥४॥|    

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