आज तन मन और जीवन धन सभी कुछ हो समपर्ण

आज तन मन और जीवन
धन सभी कुछ हो समपर्ण
राष्ट्र्‌हित की साधना में, 
हम करें सर्वस्व अपर्ण………………।…।धृ
त्यागकर हम शेष जीवनकी, सुसंचित कामनायें
ध्येय के अनुरूप जीवन, हम सभी अपना बनायें
पूणर् विकसित शुध्द जीवन-पुष्प से हो राष्ट्र्‌ अर्चन……।। १
यज्ञ हित हो पूणर् आहुति, व्यक्तिगत संसार स्वाहा
देश के कल्याण में हो, अतुल धन भंडार स्वाहा
कर सके विचलित न किंचित मोहके ये कठिन बंधन……………। २
हो रहा आह्‌वान तो फिर, कौन असमंजस हमें है
ऊच्यतर आदशर् पावन प्राप्त युग युग से हमें है
हम ग्रहण कर लें पुन: वह त्यागमय परिपूणर् जीवन………।……३

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