राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बैठक के पूर्व बोले जाने वाला मंत्र



राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बैठक के  पूर्व बोले जाने वाला मंत्र

ॐ संड्गच्छध्वं संवदध्वं, 
सं वो मनांसि  जानताम् ।
देवा भागं  यथा पूर्वे,  
संञ्ञनानां उपासते ।।1।।

समानो मंत्र: समिति: समानी, 
समानं मन: सहचित्तमेषाम् । 
समानं  मंत्र अभिमंत्रये वः,
समानेन वा हविषा जुहोमि ।।2।। 

समानी व आकूति:,
समाना हृदयानि वः ।
समानमस्तु वो मनो, 
यथा व: सुसहासति ।।3।।

।। ऊँ शांति: शांति: शांति: ।।

अर्थ:  पग से पग  (कदम से कदम) मिला कर चलो, स्वर से स्वर मिलाकर बोलो, तुम्हारे मनों में समान बोध (ज्ञान) हो। पूर्व काल में जैसे देवो ने अपना भाग प्राप्त किया, सम्मिलित बुद्धि से कार्य करने वाले उसी प्रकार अपना-अपना अभीष्ट प्राप्त करते हैं।

इन (मिलकर कार्य करने वालों) का मंत्र समान होता है अर्थात ये परस्पर मंत्रणा करके एक निर्णय पर पहुंचते हैं, चित्त सहित इनका मन समान होता है। मैं तुम्हें मिलकर समान निष्कर्ष पर पहुंचने की प्रेरणा या (परामर्श) देता हूं, तुम्हें समान भोज्य प्रदान करता हूं।

हम सभी के संकल्प एक समान हो, हम सभी के हृदय की इच्छाएं एक समान हो, हम सभी के विचार एक समान हो, जिससे कि हम सब में पूर्ण समरसता आए।

             ।। ऊँ शांति: शांति: शांति: ।।

टिप्पणियाँ

नरेन्द्र ने कहा…
जबआपलोगो को संस्कृत पदों के बारे में अनुभव कम है तो क्यों वेद के मंत्रो को बिगाड़ रहे हैं भाई ?


गीतसंघम ने कहा…
नरेंद्र जी
सादर प्रणाम,
मेरे इस पोस्ट से आपकी भावनाएं आहत हुई हैं इसके लिए मैं आपसे क्षमा प्रार्थी हूं। यदि मंत्र में कोई त्रुटि है तो कृपया बताने की कृपा करेंगे, मैं सुधार करने का प्रयास करूंगा। उससे पोस्ट की गुणवत्ता में सुधार होगा और इसके लिए मैं आपका आभारी रहूंगा।

सादर
Sudarshan Singh Chandrol ने कहा…
सुंदर। मेरे विचार में
संवदध्वं की जगह संवद्धवं है तथा
मंत्र अभिमंत्रये की जगह मंत्रं अभिमंत्रये या मंत्रमभिमंत्रये है।
सञ्जानानां की जगह सञ्जानाना है।
Sudarshan Singh Chandrol ने कहा…
सड्गच्छदध्वं की जगह संगच्छद्धवं है
Sudarshan Singh Chandrol ने कहा…
संगच्छद्धवं नहीं संगच्छध्वं
IamRkj ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Unknown ने कहा…
बहुत सुंदर