"तुम तो नारायण हो"
एक दिन स्वामी विवेकानंद ने एक वनवासी नेता से कहा -- तुम लोग हमारे यहां भोजन करोगे? नेता बोला -- हम तुम लोगों का बनाया हुआ नहीं खाते हैं। तुम्हारा छुआ नमक खाने से जात जाएगी रे? बिना नमक डाले दाल व सब्जी पकाया गया। इस बात पर वनवासी तैयार हो गया। इसके पश्चात स्वामी जी के आदेश से उन संथाल (वनवासियों) के लिए दाल, सब्जी, मिठाई, दही आदि का प्रबंध किया गया और स्वामी उन्हें बैठाकर खिलाने लगे। भोजन करते समय वनवासी बोला -- स्वामी तुमने ऐसी चीजें कहां से पाई ? हम लोगों ने ऐसा कभी नहीं खाया। स्वामी जी ने संतोषपूर्वक भोजन कराने के बाद कहा -- तुम लोग नारायण हो। आज मैंने नारायण को भोग लगाया है। तत्पश्चात मठ के सन्यासियों को संबोधित कर कहने लगे कि देखो यह लोग कितने सरल है। ऐसा सरल चित्त ऐसा निष्कपट प्रेम कभी नहीं देखा था। इनका दुःख थोड़ा बहुत दूर कर सकोगे ? नहीं तो भगवा वस्त्र पहनने से क्या होगा ? 'परहित के लिए सर्वस्व समर्पण' इसी का वास्तविक नाम है संन्यास।
टिप्पणियाँ