सामाजिक समरसता

चर्चा क्र○ 1 --

 सामाजिक समता एवं समरसता



  • राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के लिए सामाजिक समता एवं समरसता आवश्यक।
  • इसके अभाव में हिंदू समाज के विघटन (धर्म परिवर्तन) 
  • जब-जब और जहां-जहां हिंदू घटा वहां देश कटा (पाकिस्तान व कश्मीर का उदाहरण)
  • समता किसी देश, काल अथवा समाज में न रही है और ना ही संभव है (एक हाथ की पांचों उंगलियां समान नहीं) 
  • विषमता (आर्थिक) दूर करना राज्य सत्ता का दायित्व।
  • समरसता आंतरिक घनिष्ठता का परिचायक है, जैसे दूध और चीनी का मिलना। शरीर के विभिन्न अवयवों में समता ना होते हुए भी परस्पर सामंजस्य व समरसता रहने पर ही शरीर स्वस्थ रहता है।

           पूर्व काल में हिंदू समाज में समरसता

  • हिंदू समाज की पूर्ण व्यवस्था (गुण, कर्म के आधार पर) सामाजिक समरसता की पोषक। परस्पर पूरक।
  • हिंदू शिक्षा व्यवस्था (गुरुकुल प्रणाली) में राजा-रंक सभी बच्चे एक साथ पढ़ते, गुरु सेवा करते व भिक्षाटन करने समाज के हर वर्ग में जाते। कृष्ण सुदामा का उदाहरण।
  • अपने पर्वो, त्योहारों, विवाह आदि अवसरों पर समता, समरसता का दिग्दर्शन।
  • पवित्र नदी में स्नान, देवदर्शन, प्रसाद चढ़ाने व ग्रहण करने में  समता-समरसता के दर्शन। जगन्नाथ का भात पूछे  जात न पात।
  • संतों, ऋषि-मुनियों के जाति आदि की बिना चिंता किए समाज के में सम्मान और श्रद्धा का भाव। बाल्मीकि, नामदेव, व्यास आदि का उदाहरण। स्वामी रामानंद के शिष्य रविदास, कबीर आदि। मीराबाई के गुरु रविदास थे। साधु सन्यासी का प्रत्येक घर से भिक्षा ग्रहण करना समता-समरसता का प्रतीक।
  • विवाह में वधू की मांग में प्रथम सिंदूर धोबिन द्वारा लगाना। डाल (वस्त्र आभूषण की टोकरी) लाने वाले धरिकार की सभी सुहागिन महिलाओं द्वारा परछन  (पूजा) तथा दोनों को यथा सामर्थ्य दक्षिणा देना सामाजिक समरसता का द्योतक।
  • ग्राम के बड़े-बूढ़े, स्त्री-पुरुष वे चाहे जिस जाति के होों को आदरसूचक संबोधन। यथा दादा-दादी, काका-काकी (नाउन चाची, म्हारिन काकी इत्यादि)


समत-समरसता नष्ट करने का प्रयास



  •  मुसलमानों, अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में बांटो और राज करो की नीति के अंतर्गत प्राचीन हिंदू इतिहास को विकृत कर आर्यन अवार्ड, उत्तर-दक्षिण, जाति-पात, ऊंच-नीच, स्पृश्य-अस्पृश्य का भेद उत्पन्न किया। मुसलमानों ने धर्मांतरण स्वीकार न करने वाले गरीब हिंदुओं को भंगी आदि शब्दों से संबोधित कर मल-मूत्र उठवाया, अस्पृश्य बनाया।
  • सत्तालोलुप तथा  कथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल उपर्युक्त भेदभाव को बढ़ावा देकर समरसता नष्ट कर रहे हैं।
  • हिंदू समाज की रुढ़िया तथा उसके पोषक भी समरसता उत्पन्न होने में बाधक। (कश्मीर और बंगाल का उदाहरण) 

समरसता उत्पन्न करने हेतु संघ का प्रयास

  • संघ शाखा एवं उसके कार्यक्रम। अधिकारी चाहे जिस जाति का हो, प्रणाम सब करते हैं, कबड्डी में पैर पकड़ते समय जाति का ध्यान नहीं। उपविश की आज्ञा होने पर सबका एकसाथ बैठना।
  • शाखेत्तर कार्यक्रम- वन विहार, शिविर, वर्ग में साथ-साथ भोजन जलपान आदि कार्यक्रमों में सामूहिक जीवन ( वर्घा  शीत शिविर में गांधीजी प्रत्यक्ष देखकर अत्यंत प्रभावित हुए)
  • संघ के प्रयास से धर्माचार्यों का एक स्वर में से उद्घोष की अस्पृश्यता धर्मसंमत नहीं।
  • साधु संतों का (संघ के प्रयास से) सेवा बस्तियों में सहभोज एवं प्रवचन हेतु जाना। काशी के डोम राजा के घर भोजन परम पूज्य बाला साहब का उद्घोष "यदि अस्पृश्यता पाप नहीं तो दुनिया में कुछ भी पाप नहीं"
  • सेवा कार्य, संघ कार्य है। सेवा बस्ती में सप्ताह में एक  दिन शाखा।
  • सेवा बस्ती में शिक्षा एवं धार्मिक जीवन को योग्य दिशा देना।
  • अंततः हम सभी स्वयंसेवको की सामाजिक समता  एवं समरसता की दिशा में सकारात्मक सोच अपने दैनिक भाषा प्रयोग एवं आचरण में इसका प्रकटीकरण अपेक्षित है।

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