बाबा साहब आप्टे




बोध कथा
माननीय बाबा साहब आप्टे

     बात कई वर्षों पुरानी है। माननीय बाबा साहब आप्टे उस समय अस्वस्थ अवश्य थे, पर संघ कार्य के लिए अपने स्वास्थ्य की चिंता न करते हुए उनका प्रयास चलता रहता था। उसी प्रवास के सिलसिले में वे हमीरपुर जिले के राठ स्थान पर कार्यक्रम के लिए पधारे। प्रातः स्वयंसेवकों के समक्ष बौद्धिक, तत्पश्चात कार्यकर्ताओं की बैठक समाप्त हो चुकी थी। उसी के पश्चात चाय-पान के समय एक सज्जन उनसे भेंट करने आए। वह संभवतः माननीय बाबा साहब से कुछ वार्तालाप करना चाहते थे। अतः उन्होंने हिंदू समाज के अनेक समस्याओं पर चर्चा छेड़ दी। समाज में कितने भेद भाव है, अगणित कुरीतियां है, चारों ओर अव्यवस्था है, नैतिक पतन है, गंदगी है, आदि। समाज में व्यक्त अनेक दुर्गुणों की बात उन्होंने चलाई। माननीय बाबा साहब उन्हें बड़े धैर्य से सुनते रहे तथा समझाते रहे। परंतु वे सज्जन बार-बार यही आग्रह करते थे कि ऐसे समाज को आमूल-चूल बदल डालना ही चाहिए। तब माननीय बाबा साहब ने उनसे कहा, "देखिए यदि आपको कोई ऐसा निरीह प्राणी मिलता है जिसे गरीबी के कारण वस्त्र बदलने का अवसर ही नहीं। वस्त्र इतने गंदे हो गए हैं कि स्नान न करने के कारण वे उसके गंदे शरीर से चिपक गए हैं। यदि उसे आप स्वच्छ करना चाहते हैं तो उसके शरीर से वह गंदे कपड़े उतारते समय इतना तो ध्यान रखिए कि उसके शरीर की चमड़ी भी उसके साथ ना चली जाए"। बात इतनी सटीक थी कि उसे सुनकर बहस करने वाले ये महाशय मौन हो गए, उन्हें समाज के बारे में सोचने की एक नवीन दृष्टि प्राप्त हुई और वह सही समाधान के साथ वापस गए।

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