प्रेरक प्रसंग
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
(जन्म 23 जुलाई, 1856)
महाराष्ट्र में जन्म। कला व विधि में स्नातक की उपाधि प्राप्त। अंग्रेजों के कुसंस्कार युक्त विश्वविद्यालयों से हिंदू बालकों को दूर रखने के लिए 1880 में राष्ट्रीय विद्यालय आरंभ किया।
यह विद्यालय है राष्ट्रीय जागरण का केंद्र बना और 4 वर्ष में इसकी छात्र संख्या 1000 हो गई। जनमानस में अंग्रेजों के विरुद्ध असंतोष एवं अपने राष्ट्र के प्रति भक्तिभाव जगाने हेतु केसरी नामक मराठी पत्रिका का संपादन, प्रकाशन व वितरण आरंभ किया। तिलक जी के लेखों तथा समाचारों से अंग्रेज सरकार बौखला उठी। इन पर मुकदमा चला व अनेकों वर्षों तक उन्होंने जेल की यातना सही। उन्होंने महाराष्ट्र में गणेशोत्सव तथा शिवाजी राज्याभिषेक उत्सव समाज जागरण के लिए आरंभ किया। सन 1857 में प्लेग, अकाल व भूचाल का संकट आने पर अंग्रेजों की उपेक्षापूर्ण नीति के विरुद्ध आंदोलन किया। परिणामस्वरुप उन्हे 18 माह का कारावास मिला। तिलक जी ने नारा दिया कि , ' स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।' 1908 में उन्हें 6 वर्ष के कारावास तथा ₹1000 जुर्माने की सजा हुई। इन्हे ब्रह्मदेश के मांडले जेल में रखा गया। जेल में उन्होंने गीता रहस्य नामक ग्रंथ लिखा। 1916 में होमरूल की स्थापना की।
उन्हें 61 वें जन्मदिन पर देश में सम्मानित किया गया और ₹100000 की थैली भेंट की गई। उन्होंने हिंदुत्व को राष्ट्रीयता का आधार बनाया। वे कहते थे, वीर पूजा मानव का स्वाभाविक गुण है। उनपर वेदांत दर्शन की गहरी छाप थी। वे प्रथम नेता थे जिन्होंने अंग्रेजी शासन का खुला विरोध करते हुए स्वराज्य का नारा दिया था।
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