गच्छन पिपीलिको याति


सुभाषित

गच्छन पिपीलिको याति योजनानां शतैरपि।
अगच्छन् वैनतोअपि पदमेकं न गच्छति।।

अर्थ :- चलती हुई चींटी भी सैकड़ों योजन की दूरी तय कर लेती है। (लेकिन) न चलता हुआ गरुण एक कदम भी नहीं चल पाता। (अतः सदैव कर्मरत रहो, रुको मत)

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