सुभाषित
उद्यमं साहसं धैर्यं, बुद्धि, शक्ति, पराक्रमः ।
षडेते यत्र वर्तन्ते, तत्र देवः सहायकृत ।।
अर्थात्--
उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम यह छह गुण जिसके पास होते हैं, देवता उसकी सहायता करते हैं।
दुनिया में जितने भी उल्लेखनीय परिवर्तन या बदलाव आये हैं वे सब क्रान्ति से आये हैं और क्रान्ति का अर्थ लडाई झगडा खून खराबा नहीं होता। सोच का परिवर्तन होता है।
एक विश्लेषण चिन्तन
भारत जैसे देश को एक क्रान्ति की आवश्यकता है एक वैचारिक सोच बदलने की क्रान्ति। महत्वपूर्ण मुद्दों पर अभियान चलाकर काम करने की क्रान्ति। और अतीत में जब भी ऐसे अवसर आये हैं हमने क्रान्ति की है। आमूल-चूल परिवर्तन किये है चाहे हरित क्रांति हो श्वेत क्रांति हो उद्योग क्रान्ति हो। और सबसे बडी सामाजिक बदलाव की क्रान्ति तो हमारे संविधान निर्माताओं ने देश की आजादी के समय इस देश का दूरदर्शी दूरगामी परिणाम वाला संविधान बनाकर कर दी थी जिसमें देश के हर नागरिक को मूल अधिकार तथा बराबरी के दर्जे के लिए प्राविधान किये थे जो इस देश की सामाजिक व्यवस्था पर हजारों साल से एक काला धब्बा था और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी मे हमें संकीर्ण सोच वाला अल्प विकसित समाज माना जाता था।
क्रान्ति की शुरुआत पश्चिमी देशों यूरोप रूस जर्मनी आदि से हुई जहाँ सामाजिक परिवर्तन भी हुए।राजनैतिक परिवर्तन भी हुए और उद्योग तथा शिल्प क्रान्ति भी हुई।
इन सारी क्रान्तियो के कारण ये देश तीन चार सौ सालों में दुनिया के सिरमौर बन गये जबकि इनके अतीत में सामान्यत ऐसा नहीं था। अपनी रुढिवादी संकीर्ण सोच त्यागकर ये दिन दोगुनी रात चौगुनी उन्नति करते गये।
इन्होंने क्रमबद्ध यानि सिस्टेमेटिक तथ्यात्मक शिक्षा को अपनाना शुरू किया। अनुसंधान विकास उद्योग पर ध्यान दिया। अपनी रुढिवादी धार्मिक परम्पराओं से बाहर निकले। धर्म को राजनीति से अलग रखा और अपने देश को एकता के सूत्र में बांधे रखने के लिए सब कुछ किया।
इससे इन देशों के नागरिकों के मन में देश के प्रति भक्ति श्रद्धा त्याग समर्पण की भावना आयी क्योंकि देश के शासकों ने धर्म जाति नस्ल रगं पर राजनीति नहीं की सभी को समान अवसर दिये।
अमेरिका जापान फ्रान्स इटली इंगलैण्ड रूस जैसे अनेक देश उद्योग अनुसंधान में बहुत आगे निकल गये और जापान सिंगापुर जैसे अनेक देश ऐसे भी हैं जिनके पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं है। मानव संपदा भी ज्यादा नहीं है लेकिन फिर भी बहुत आगे निकल गये।
और चीन जैसे देश ने धर्म को राजनीति से अलग कर विकास का अनूठा उदाहरण पेश किया और आश्चर्य होता है जब बंगला देश जैसा देश प्रति व्यक्ति आय में भारत से आगे निकल जाता है।
इसका प्रमुख कारण है कि उपरोक्त ज्यादातर देशों की सरकारों नेताओ का पूरा ध्यान विकास संसाधनों के सदुपयोग पर रहता है वे अभियान चलाकर काम करते हैं जबकि आजादी के बाद से आज तक भारत में सरकारों का ध्यान जातिय धार्मिक गठबंधन बनाकर सत्ता पाना रहता है। इस राजनीति ने देश का बहुत नुकसान किया है।
भारत को अभियान चलाकर क्रान्ति लाकर आमूल-चूल परिवर्तन करने होंगे और यह सरकार नहीं आम जनता को करना होगा आम जनता को राजनेताओं और राजनैतिक दलों को अपना एजेंडा बनाकर चलने पर मजबूर करना होगा। मुफ्त की आदत छोड़कर सरकार को रोजगार उद्योग व्यापार अनुसंधान बढाने के लिए मजबूर करना होगा। देश के हर नागरिक को बिना भेदभाव समान रूप से अवसर उपलब्ध कराने के लिए मजबूर करना होगा। संवैधानिक अधिकार देने के लिए मजबूर करना होगा और इसके साथ ही अपने संवैधानिक कर्तव्य भी समझने होगे।
दूसरे विकसित देशों के माडल अपने देश की परिस्थितियों के अनुसार अपनाने होंगे। चीन जैसे देश में फैक्ट्री के कामगारों को उसी परिसर में आवास दिये जाते हैं जिससे उनका आने जाने का समय किराया बचता है। सस्ते किराये पर आवास मिल जाते हैं पढाई की व्यवस्था सस्ती हो जाती है इससे वे कम वेतन पर ज्यादा घंटे काम कर पाते हैं। ऐसी व्यवस्थाओं को समझकर अपनाना होगा।
अब समय आ गया है कि देश में महत्वपूर्ण राजनैतिक पदों पर उच्च शिक्षित लोग तैनात हो। हर विभाग में विशेषज्ञो का पैनल हो जिससे विभागों की अच्छी नीतियां बन सके।
ये सब क्रान्ति इस देश में समय की सबसे बड़ी जरूरत है केवल हजारों साल के अतीत पर गर्व करते रहने से हम अन्तरराष्ट्रीय समाज मे सम्मान नहीं पा सकते अपनी जगह नहीं बना सकते उनसे कदमताल नहीं कर सकते मुकाबला नहीं कर सकते।

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