मकर संक्रांति पर विचारणीय बिंदु

                    
                   

                                 बौद्धिक

(मकर संक्रांति पर विचारणीय बिंदु)

        हमारी पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा एक वर्ष में पूर्ण करती है। अपने अंडाकार परिपथ में प्रति मास एक राशि( तारा समूह ) के प्रभाव क्षेत्र से गुजरती है। इस प्रकार वर्ष भर में यह 12 राशियों को पार करती है सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश को संक्रमण या संक्रांति कहते हैं। 12 संक्रांतियों  मकर संक्रांति तथा चैत्र संक्रांति अपने क्षेत्र के विभिन्न रूप नाम से मनाई जाती है।

      कालगणना "सौर वर्ष" का प्रारंभ मकर संक्रांति के दिन से मानते हैं। जबकि अपने अन्य 5 उत्सव वर्ष  प्रतिपदा,  हिंदू साम्राज्य दिनोत्सव, गुरुपूर्णिमा, रक्षाबंधन, विजयादशमी की कालगणना चंद्रवर्ष (विक्रमी/शक संवत्) के अनुसार की जाती है।
     मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिणायन (मकर रेखा) से उत्तरायण (कर्क रेखा की ओर) जाने का अर्थात  भारत में अधिक प्रकाश के प्रारंभ (दिन बड़ा होने लगता है, और रात छोटी) का पर्व मनाया जाता है।
     यह पर्व अंधकार से प्रकाश की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर, अकर्मण्यता से कर्मठता की ओर प्रवृत्त होने की प्रेरणा देती है। मकर संक्रांति जैसे-जैसे ऋतु परिवर्तन होता है, वैसे-वैसे सूर्य के ताप एवं प्रकाश के प्रभाव के वातावरण का धुन्ध छटने लगता है। प्रकृति के कण-कण में एक नई स्फूर्ति, नई चेतना की अनुभूति होने लगती है। जीव जंतु पेड़ पौधे सब के सब नए उत्साह एवं उल्लास से भर जाते हैं। इतना ही नहीं यह पर्व सामाजिक कुरीतियों तथा समस्त भेदभाव को दूर कर सामाजिक समरसता स्थापित करने का शुभ दिन है।
     सूर्य के दक्षिणायन काल में मांगलिक कार्य संपन्न नहीं होते हैं। भीष्म पितामह ने स्वर्ग प्राप्त करने की इच्छा से सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा के लिए अपने योग बल से प्राण को रोके रखा। संकल्प शक्ति से मृत्यु की जा सकती है।
     मकर संक्रांति को दक्षिण भारत में पोंगल तथा पंजाब में लोहड़ी के नाम से बड़े उत्साह से मनाते हैं।
     महाराष्ट्र में इस दिन कहते हैं कि "तिलगुल घ्या गोंड बोला" अर्थात "मुझसे तिल गुड़ लो और मीठा बोलो"। आयुर्विज्ञान की दृष्टि से तिल गुड़ तथा खिचड़ी का सेवन स्वास्थ्य के लिए गुणकारी है।
     उपरोक्त भावना एवं विचारों के साथ यह पर्व हिंदू समाज आदिकाल से मनाता आ रहा है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में नर-नारी निकटस्थ नदी अथवा प्रवाहमान जल या पवित्र गंगा, यमुना के संगम पर स्नान कर द्रव्य, वस्त्र का दान करते हैं। सभी परिवारों में सामान्यतः  खिचड़ी बनती है।
     इस पर्व पर किन्हीं-किन्हीं मंदिरों में विशाल मेला लगता है। गोरक्षनाथ मंदिर का मेला तो विख्यात है। यहाँ पुर्वाञ्चल तथा नेपाल राष्ट्र के  लाखो लोग खिचड़ी चढ़ाने आते हैं।
      मकर संक्रांति पर तिल गुड़ के लड्डू के आदान-प्रदान की परंपरा है। गुड़ माधुर्य तथा तिल प्रेम का प्रतीक है। "समाज में परस्पर प्रेम, समता, ममता का व्यवहार सदैव बना रहे, तभी समाज सुव्यवस्थित एवं एक सूत्र में बंध सकता है। यही संदेश यह पर्व हमें प्रतिवर्ष देता है।

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