परम पूज्य माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर (श्री गुरुजी)





बोध कथा

परम पूज्य माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर          (श्री गुरुजी)


पूज्य गुरु जी के जीवन का एक प्रसंग है। 1952 में प्रयाग में महाकुंभ के अवसर पर एक विशाल गौरक्षा सम्मेलन का आयोजन किया गया था। राजर्षि  पुरुषोत्तम दास टंडन के अध्यक्ष थे। उसके आयोजक थे संत प्रवर प्रभुदत्त ब्रह्मचारी। उक्त सम्मेलन मे दस लाख से भी अधिक गौभक्त नर-नारी एकत्रित थे। जहां तक दृष्टि जाती थी, जन सागर हिलोरे लेता दिखाई देता था। सभा मंच पर राजर्षि टंडन एवं ब्रह्मचारी जी पहुंच चुके थे। पूज्य गुरु जी के आने की प्रतीक्षा थी। वे जब अपने निश्चित समय पर सम्मेलन में पधारे तो चारों ओर से 'पूज्य गुरु जी की जय' की कोलाहलपूर्ण  आवाज गूंजने लगी। जय निनाद सुनते ही श्री गुरुजी को जैसे विद्युत का झटका सा लगा। वे रूके और  क्षण भर में घूम कर अपनी मोटर की ओर तेज गति से बढ़ने लगे। मोटर में बैठकर बोले- चलो वापस, जिस सम्मेलन में भारत माता की जय के स्थान पर किसी व्यक्ति की जय बोलने वाले लोग एकत्रित हो वहां मेरे लिए कोई स्थान नहीं हो सकता। वहां मेरी कोई जरूरत नहीं है।
     यह स्थिति समझने में संत प्रबुदत्त ब्रह्मचारी को देर नहीं लगी। उन्होंने उपस्थित जनसमुदाय को शांत कराया। "गौ माता की जय" के नारे लगवाए और स्वयं दौड़कर श्री गुरुजी के पास गए। यह आश्वासन देकर वापस लाए कि अब भारत माता और गौ माता की जय के ही नारे लगेंगे, किसी व्यक्ति के नहीं।

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