अमृत वचन
परम पूजनीय श्री गुरुजी ने कहा, " अपने कार्य की इतनी प्रगति हो कि जगद्गुरु कहलाने वाले इस पवित्र ध्वज के सामने एक बार पुनः संसार नतमस्तक हो जाये, इसके चरणों में अपने जीवन की भेंट चढ़ाकर इसकी पूजा करने के लिए बाध्य हो जाये। यही आकांक्षा यही आवेश अपने अंतःकरण में उत्पन्न हो।
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