अमृत वचन
परम पूजनीय श्री गुरुजी ने कहा, "पूजा का अर्थ है समर्पण की भावना को प्रकट करना। इसका दृश्य स्वरूप क्या होगा ? अपने लिए जो बहुत उपयोगी वस्तु हो उसे देना ही समर्पण का दृश्य स्वरूप होगा। व्यवहारिक जगत में हमारे स्वार्थों की पूर्ति के लिए धन की आवश्यकता रहती है। सुख समाधान, ऐश्वर्य, अन्यान्य प्रकार की उपयोग सामग्री, सब कुछ धन से प्राप्त होती है। धन को पर्याप्त प्रमाण में अपने आराध्य देव के सामने रखना ही सच्चा समर्पण है। यही वास्तव में पूजा है। यह द्रव्य समर्पण सारे जीवन समर्पण का प्रतीक और प्रारंभ मात्र है। हमने अधिक से अधिक दिया है, ऐसा संतोष हमको प्राप्त होता रहे, इतना हमे देना चाहिए।

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