|| वंदे मातरम् ||

वंदे मातरम् ।
सुजलां सुफलाम् मलयजशीतलाम्
शस्यश्यामलाम् मातरम्।
वंदे मातरम् ।

शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्
फुल्ल - कुसुमित  - द्रुम - दल - शोभिनीम् ।
सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम् ।
सुखदां वरदां मातरम् ।
वंदे मातरम् ॥ १॥

कोटि - कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनादकराले
कोटि-कोटि-भुजैर्धृत-खर-करवाले,
अबला केनो मा एतो बोले ?
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीं ।
रिपुदलवारिणीं मातरम् । 
वंदे मातरम् ॥ २॥

तुमि विद्या, तुमि धर्म
तुमि हृदि, तुमि मर्म
त्वम् हि प्राणा: शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमारई प्रतिमा गडी मन्दिरे-मन्दिरे । 
वंदे मातरम् ॥ ३॥

त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदलविहारिणी
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वां
नमामि कमलाम् अमलां अतुलाम्
सुजलां सुफलाम् मातरम्॥४॥

वन्दे मातरम्
श्यामलाम् सरलाम्
सुस्मिताम् भूषिताम्
धरणीं भरणीं मातरम् ।
वंदे मातरम् ॥ ५॥


भावार्थ :
मैं आपके सामने नतमस्तक होता हूँ। ओ माता!
पानी से सींची, फलों से भरी,
दक्षिण की वायु के साथ शान्त,
कटाई की फसलों के साथ गहरी,
माता!

उसकी रातें चाँदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही हैं,
उसकी जमीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुन्दर ढकी हुई है,
हँसी की मिठास, वाणी की मिठास,
माता! वरदान देने वाली, आनन्द देने वाली।

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