बाबा साहब डा० भीमराव अम्बेडकर जी तथा वीर विनायक दामोदर सावरकर जी की मित्रता, सहमति, तथा सहयोग की चर्चा अब तक जानबूझकर भारतवादविरोधियों ने दबाये रखने हेतु चर्चा में नहीं आने दिया और डा० अंबेडकर जी के धुरविरोधी योगेंद्रनाथ मंडल जी की उन बातों को अंबेडकर जी की बातों के रूप में प्रचारित करते रहे जिन बातों के अंबेडकर जी विरोधी थे। जबकि सनातन हिंदु समाज (वैदिक,वेदांती, पौराणिक, बौद्ध, जैन, सिख आदि) के समग्र संगठन तथा उत्थान को समर्पित डा० अंबेडकर जी तथा वीर सावरकर की मित्रता तथा सहयोग को जानबूझकर छुपाया जाता रहा। *किंतु सत्य तो स्वयंप्रकाश होता है जो सदा सर्वदा अपने स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित होता रहता है।
डा० भीमराव अम्बेडकर जी वीर सावरकर के कालापानी में जेल की कालकोठरी में बंद होने से दुखी तो थे ही बल्कि इस बात से अधिक दुखी थे कि *वीर सावरकर के जेल में रहने के कारण भारत का विखंडन कराने को आतुर भारत पर प्रथम आक्रमण करने वाले विदेशी मुसलिमों के समूह भारतीय मुसलिमों को भी गुमराह करके अपनी वैदेशिक आक्रमणकारी मानसिकता को वाक ओवर दिला रहे हैं और द्वितीय आक्रमणकारी अंग्रेजों के जाने के बाद प्रथम आक्रमणकारी विदेशी मुसलिमों के पक्ष में मामलों को मोड़ा जा रहा है और गांधी जी की नीतियों का जमकर दुरूपयोग भारतवंशियों के विरोध में हो रहा है।
वीर सावरकर के बिना डा० अंबेडकर जी अपने को अकेला पा रहे थे इसकारण बाबा साहब ने वीर सावरकर की काला पानी से मुक्ति की कानूनी लड़ाई आरंभ की और मामले में स्वयं ही वकालत तथा पैरवी आरंभ कर दी।
वो भी तब जबकि कोल्हू पेरने वाली अवधि निरर्थक जा रही थी जबकि मुसलिम लीग की कट्टर मुसलिमवादी भारतविरोधी नीतियां तथा इनका सपोर्ट कर रहीं गांधी की मुसलिमपरस्त नीतियां और भारतवादविरोधी नेहरूज का इनमें योजनाबद्ध तड़का भारत को विखंडन की राह पर ले जा रहा था जिससे अंबेडकर और कालापानी में सावरकर दोनों ही उद्वेलित थे।
अंबेडकर की घनघोर हिंदूवादी आत्मा भी मुसलिमों द्वारा बना दिये गये अछूतों की मुक्ति हेतु लड़ रहे वीर सावरकर के बिना अधूरी थी जिन्होंने अकेले ही सावरकर जी के पक्ष में रिहाई की कानूनी लड़ाई लड़ी।
ज्ञातव्य है कि मुसलिम आक्रमणकारियों के काल के दौरान अरब कबीलाई भेदभाव के अनुरूप, मुसलिम शासकों के द्वारा हिंदू समाज में फूट डालो और राज करो की नीति के तहत , हिंदू समाज में भी मौखिक रूप प्रचलित करा दी गयी जन्म आधारित भेदभाव यानि जात पांत के निर्मूलन की लड़ाई ये दोनों वीर अपने अपने तरीके से लड़ रहे थे।
यद्यपि मुसलिम काल में अछूत बना दिये गये देशभक्त हिंदुओं के अति पीड़ित समूह में जन्में अंबेडकर मुख्यत: उनकी मुक्ति को प्रमुखता से लड़ने में उलझे हुये थे किंतु वीर सावरकर जी द्वारा किये जा रहे इन सम्मानित हिंदू बंधुओं (तत्कालीन तथाकथित अछूत) के उद्धार सहित भारत तथा भारतीयता के हिंदुत्ववादी उपागम के प्रति डा० अंबेडकर का समर्थन गांधी और नेहरूज की तुलना में अधिक था।
अंबेडकर का गहराई से अध्ययन करने और कम से कम उनके संघर्षों के तीन ही अल्प चर्चित पक्षों(आर्य आक्रमण के झूठ का प्रामाणिक तथ्यों का खंडन करते हुये समस्त हिंदू समाज की समस्त जातियों के लोगों का एक ही माता पिता की संतान ठहराना, तथा मुसलिमों का अविश्वसनीय स्वरूप सहित भारतविभाजन का विरोध सहित लाख लालच देने पर भी बौद्ध ही बनना जो सनातन धर्म की ही शाखा है ) को ध्यान में रखने पर आप भी हमारी तरह ही कह सकते हैं कि, "यदि हिंदू समाज बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में, आज 2021 के स्तर पर भी अपने मूल रूप को प्राप्त कर सका होता अर्थात् मुसलिम आक्रमणकारियों द्वारा उनके अरबी संस्कृति के कबीलावाद की तर्ज पर पनपाये गये जन्म आधारित भेदभाव को पुन: सुधार कर अपने वैदिक संस्कृति के अनुरूप समरसता की ओर बढ चला होता तो डा० भीमराव अंबेडकर जी हिंदुत्व के सबसे बड़े पुरोधा होते और हिंदुत्व के लिये लड़ रहे होते"।
इस प्रकार हम देखते हैं कि अपने सम्मानित हिंदू भाइयों (तत्कालीन अछूत सहित) के लिये लड़ रहे वीर सावरकर तथा हिंदू समाज को कमजोर कर रहे अछूतपन की बुराई की पीड़ा में पड़े होने के कारण इसे समाप्त कर हिंदू समाज को सशक्त करने के काम में लगे डा० भीमराव अंबेडकर ये दोनों ही परस्पर आकर्षित थे और एक दूसरे के प्रति संवेदनशील सहयोग भी कर रहे थे।
अत: दोनों की राय थी कि मुसलिम नेताओं के भारतविरोध तथा भारत के विखंडन की सफल होती रणनीति तथा गांधी और नेहरू की घी चीनी लगी भ्रामक नीतियों से मुसलिमों की रणनीति को मिल रहे सफलता के ईंधन के विरूद्ध भारत को संगठित राह दिखाने हेतु वीर सावरकर का जेल से बाहर आना अति अनिवार्य है । क्यूंकि भारत तो अंग्रेजों की समस्या के प्रति जाग चुका था जिससे अब अंग्रेजों का जाना अब तय था । किंतु अब समय था प्रथम आक्रमणकारी मुसलिमों के असली खतरे के प्रति भी देश को जागृत कर संगठित कर देश को इनसे भी मुक्तज्ञकराना और साथ ही अपनी स्वतंत्रता को अंग्रेजों से लगभग जीत चुके भारत को अंग्रेजों से हिंदुओं के पक्ष में मुसलिमो के बजाय बढत दिलाना।
यही वे कारण हैं जिनके निमित्त एक ओर डा अंबेडकर ने वीर सावरकर की रिहाई को आवश्यक मानकर कानूनी लड़ाई लड़ी जबकि वीर सावरकर ने जेल में रह कर हिंदुस्थान में हिंदुओं को पराजित करा रहे गांधी आदि के भरोसे हिंदू समाज को छोड़े रहने के बजाय येन केन प्रकारेण जेल से बाहर आने की रणनीति पर काम किया क्यूंकि वह जेल में रहकर समय गंवाने के बजाय बाहर रह कर देश के लिये संगठन तथा संघर्ष में विश्वास करते थे और इसके लिये इंग्लैंड और फ्रांस तक में गिरफ्तार होने पर जेल के शिकंजे तोड़कर तड़तड़ाती गोलियों के बीच से भागकर स्वतंत्रता आंदोलन को विदेश की धरती पर संगठित किया था।


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