गणगीत
जाग उठा है आज देश का वह सोया अभिमान।
प्राची की चंचल किरणों पर आया स्वर्ण विज्ञान।।
जाग उठा है आज देश का वह सोया अभिमान।।ध्रु।।
स्वर्ण प्रभात खिला घर-घर में जागे सोए वीर,
युद्ध स्थल में सज्जित होकर बढ़े आज रणधीर,
आज पुनः स्वीकार किया है असुरों का आह्वान।।
जाग उठा है आज देश का वह सोया अभिमान।।१।।
सहकार अत्याचार युगों से स्वाभिमान फिर जागा,
दूर हुआ अज्ञान पार्थ का धनुष बाण फिर जागा,
पांचजन्य ने आज सुनाया संसृति को जयगान।।
जाग उठा है आज देश का वह सोया अभिमान।।२।।
जाग उठी है वानर सेना जाग उठा बनवासी,
चला उदधि को आज बांधने ईश्वर का विश्वासी,
दानव की लंका में फिर से होता है अभियान।।
जाग उठा है आज देश का वह सोया अभिमान।।३।।
खुला शम्भु का नेत्र आज फिर वह प्रलयंकर जागा,
तांडव कि वह लपटें जागी, वह शिवशंकर जागा,
ताल ताल पर होता जाता पापों का अवसान।।
जाग उठा है आज देश का वह सोया अभिमान।।४।।
ऊपर हिम से ढकी खड़ी है यह पर्वत मालाएं।
सुलग रही है भीतर-भीतर प्रलयंकर ज्वालाएं,
जन लपटों में दिख रहा है भारत का उत्थान।।
जाग उठा है आज देश का वह सोया है अभिमान।।५।।

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