गणगीत
शाखा है गंगा की धारा, डुबकी नित्य लगाते हैं।
मां का वंदन सांझ-सवेरे, श्रद्धा सुमन चढ़ाते हैं ।।ध्रु.।।
संघ-साधना अर्चन-पूजन, प्रतिदिन शीश झुकाते हैं।
भारत मां के भव्य भाल पर, भगवा ध्वज लहराते हैं।
संघ स्थान मंदिर सा पावन, मन दर्पण हो जाते हैं।
शाखा है गंगा की धारा, डुबकी नित्य लगाते हैं ।।1।।
इसकी रज में खेल-खेल कर, तन चन्दन बन जाते हैं।
योग, खेल, रवि नमस्कार से, स्वस्थ शरीर बनाते हैं।
स्नेह भाव से मिलते-जुलते, मद-मत्सर मिट जाते हैं।
शाखा है गंगा की धारा, डुबकी नित्य लगाते हैं ।।2।।
लोक संगठन के संवाहक, गटनायक बन जाते हैं।
कुंभकार की रचना करके, गणशिक्षक कहलाते हैं।
देशभक्ति का गीत ह्रदय में, मातृशक्ति पनपाते हैं।
शाखा है गंगा की धारा, डुबकी नित्य लगाते हैं ।।3।।
मधुकर की यह तपः साधना, वज्र शक्ति बन जाएगी।
मां बैठेगी सिंहासन पर, यश वैभव को पाएगी।
केशव माधव का यह दर्शन, मोह जाल कट जाते हैं।
शाखा है गंगा की धारा, डुबकी नित्य लगाते हैं।
मां का वंदन सांझ-सवेरे, श्रद्धा सुमन चाहते हैं।
शाखा है गंगा की धारा, डुबकी नित्य लगाते हैं ।।4।।

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