नगर ग्राम गिरी कंदर वन से, गूंज उठा संदेश।
समाजव्यापी संघसाधना, चाहे सारा देश।
समाजव्यापी संघसाधना, चाहे सारा देश।
चहुँओर ओर से संकट माला, देश तोड़ने आई।
राष्ट्र गगन में घन बादल सी, चढ़कर-बढ़कर छाई।
भेद विषमता स्वार्थ कुप्रथा, से धूमिल परिवेश।
किंतु जागता दिखा जनों में, राष्ट्रभक्ति उन्मेश।
चकाचौंध बिजली सी जगमग, करती ज्यों सब देश।
नगर ग्राम गिरी कंदरवन से, गूंज उठा संदेश।
समाज व्यापी संघ साधना, चाहे सारा देश ।।१।।
सुना-सुनाया समरसता का, मंत्र चतुर्दिक छाया।
जन -मन से सज्जन गण से, प्रति भाव अलौकिक पाया।
आस्था और विश्वास सभी में, सहमति सबकी पाई।
हिंदू हृदय ने राष्ट्रभक्ति की, गीता पुनरपि गायी।
राष्ट्र विजय पथ प्रशस्त करने, भर उर में आवेश।
नगर ग्राम गिरी कंदरवन से, गूंज उठा संदेश।
समाज व्यापी संघ साधना, चाहे सारा देश ।।२।
संघ-शक्ति सद्गुण विकास का, प्राण हमारी शाखा।
सार्वभौम सर्वस्पर्शी हो, केंद्र बने जनता का।
सर्व-दूर संपर्कित सज्जन, राष्ट्रहित सक्रिय हो।
अविरत-अनथक शीघ्र इसी में, तन मन धन का व्यय हो।
सज्जन अनुगत स्वाधिस्ठित जन, गढ़े राष्ट्र नवनेश।
नगर ग्राम गिरी कंदरवन से, गूंज उठा संदेश।
समाज व्यापी संघ साधना, चाहे सारा देश ।।३।।

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