भोजन मंत्र

-: भोजन पूर्व उच्चारित मंत्र :-

ऊँ ब्रहार्पणं ब्रम्हहविर् ब्रम्हाग्नौ ब्रम्हणा हुतम्।
ब्रम्हैव तेन गन्तव्यं ब्रम्हकर्मसमधिना।।

(गीता, अध्याय ४/२४)


अर्थ : यज्ञ में आहुति देने के साधन (स्रुक-स्रुवा हाथ की मृगि  हंस व्याघ्र आदि मुद्राएं) अर्पण भी ब्रह्म है, हवन करने का पदार्थ हवि भी ब्रह्म है, ब्रह्मरूपी अग्नि में ब्रह्मरूप होमकर्ता द्वारा जो हवन किया गया, वह भी ब्रह्म है। अतः ब्रह्मरूप कर्म में समाधिस्थ पुरुष के द्वारा जो प्राप्त होने योग्य है, वह ब्रह्म ही है।


ॐ सहनाववतु सहनौभुनक्तु सहवीर्यं करवावहै तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।
|| ॐ  शांति: शांति: शांति: ||

(कृष्ण यजुर्वेद उपनिषद)


अर्थ : हम दोनों (गुरु और अंतेवासी शिष्य) परस्पर मिलकर सुरक्षा करें। हम मिलकर भोग करें (देश में कोई भूखा नहीं रहे) हम साथ साथ मिलकर शौर्य करें (राष्ट्र में परचक्र आने पर युद्ध करें) हम (देश के संगठन रूपी तपस्चर्या से) उज्जवल एवं प्रदीप्त हो। हमारा अध्ययन तेजस्वी हो। परस्पर द्वेष ना करें तो त्रिविध तापों (तो आधिभौतिक, आधिजैविक, आध्यात्मिक) से शांति प्राप्ति हो।

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