ऋषियों सा व्यक्तित्व निराला, कर्मयोगियों सी काया।
मथुर सरल व्यवहार धनी थे, दम्भ न जिनको छू पाया।
दिव्य विभूति का चित्र सामने, जैसे ही आ जाता है।
श्रद्धा से माधव चरणों में, शीश स्वयं झुक जाता है ।।१।।
यज्ञ रूप उनका जीवन, निष्काम कर्म के थे अवतार।
सुप्त राष्ट्र की निद्रा तोड़ी, माधव नाम किया साकार।
मातृभूमि सेवा का जब, भाव सामने आता है।
श्रद्धा से माधव चरणों में, शीश स्वयं झुक जाता है ।।२।।
जिनके आवाहन पर अगणित, युवकों ने जीवन वारा।
हुई तरंगित हृदय-हृदय में, राष्ट्रप्रेम गंगा धारा।
उस वाणी का एक-एक जब, शब्द सामने आता है।
श्रद्धा से माधव चरणों में, शीश स्वयं झुक जाता है ।।३।।
निश्चल, निर्भय, निर्मल चिंतन, राष्ट्र दिशा पर स्वस्थ विचार।
केशव रोपित संघ वृक्ष को, सींच बनाया भव्याकार।
हिंदु जागरण बेला का जब, लक्ष्य सामने आता है।
श्रद्धा से माधव चरणों में, शीश स्वयं झुक जाता है ।।४।।
पुण्य प्रेरणा बने उर्जा, मातृभूमि सेवा पथ पर।
अवरोधोंसे टक्कर लेंगे, ध्येयमार्ग पर हम डटकर।
हिंदू राष्ट्र वैभव का जब, संकल्प सामने आता है।
श्रद्धा से माधव चरणों में, शीश स्वयं झुक जाता है ।।५।।

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