हे! भीष्म तुम्हारा पौरुष भी सदियों धिक्कारा जाएगा

यदि कुटिल समर की चालों से अभिमन्यु मारा जाएगा   
हे! भीष्म तुम्हारा पौरुष भी सदियों धिक्कारा जाएगा।।ध्रु।।
वे अश्रु तुम्हें धिक्कारेंगे जो द्रुपद सुता के बहते थे
है तात करो मेरी रक्षा  जो  भरी  सभा  में कहते थे
यदि धर्म का ही रक्षण न हो तो मौन कलंकित होता है
मात्र  एक अनुचित निर्णय इतिहास में अंकित होता है 
यदि धूर्त सभा के मध्य वधु का चीर उतारा जायेगा
हे! भीष्म तुम्हारा पौरुष भी सदियों  धिक्कारा जाएगा ।।१ ।
जब  नग्न  सभ्यता  करने  को  सारे  कौरव  हैं खड़े हुए 
हे  गंगापुत्र   तुम्हारे  भी  क्यों  नेत्र  भूमि  में  गड़े हुए 
कब समय क्षमा कर पाता है ऐसे कुत्सित अपराधों को
सब पुण्यभेंट हो जाते हैं ऐसे कुछ हिंसक व्याधों को
यदि सिंहासन प्रति वचनबद्ध हो पाप निहारा जायेगा   
हे! भीष्म तुम्हारा पौरुष भी सदियों  धिक्कारा जाएगा ।।२।।
सब जिसको दूत समझते हैं वो अजर अमर अविनाशी है 
जो भूमंडल का स्वामी  है अब पाँच ग्राम  अभिलाषी  है 
जो  परमब्रह्म अवतारी है उसको  छल  से  क्या  साधेंगे  
जो चक्र सुदर्शन धारी  है   उसको   कौरव  क्या  बाँधेंगे 
यदि   मूर्ख  कौरवों  द्वारा  केशव  को  दुत्कारा  जाएगा
हे!  भीष्म  तुम्हारा  पौरुष भी सदियों  धिक्कारा जाएगा 
यदि कुटिल समर की चालों से अभिमन्यु मारा जाएगा   
हे! भीष्म तुम्हारा पौरुष भी सदियों  धिक्कारा जाएगा ।।३।।


टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
ये कविता किसने लिखी है?