कण-कण गाता है मचल

 


मां की पूजा करते-करते, मस्ती का मद छाने लगता।
कण-कण गाता है गान मचल, मेरा मन भी गाने लगता।
ओ सिंह वाहिनी बलधारी, ओ ज्ञान दायिनी उजियारी।
ओ क्षीर सिन्धु पर विलसित मां, जगजननी तू लक्ष्मी न्यारी। 
तेरे चिंतन करते-करते, ब्रह्मांड समा जाने लगता।
कण-कण गाता है गान मचल, मेरा मन भी गाने लगता  ।।१।।
दुनिया वाले पागल कहते, घरवाले कहते दीवाना।तेरी अर्चन की धुन में मां, सब भूल गया खाना पीना।आजाद भगत सिंह बिस्मिल सा, मन मस्ती में आने लगता।
कण-कण गाता है गान मचल, मेरा मन भी गाने लगता। ।।२।।
भूखे नंगे अज्ञानी है, जब तक अगणित बांधव मेरे।मां कैसे सुख उपभोग करू, मन मे चुभते कंटक मेरे।शाश्वत पीड़ा का विष पीकर, मना अमृत रस पाले लगता।
कण-कण गाता है गान मचल, मेरा मन भी गाने लगता।मां की पूजा करते-करते, मस्ती का मद छाने लगता।कण-कण गाता है गान मचल, मेरा मन भी गाने लगता  ।।३।।

टिप्पणियाँ