हे निखिल ब्रम्हांड नायक, एक यह वरदान दो।
मातृभू के हित अखंडित कर्म निष्ठा ज्ञान दो।
देव देवी सब समाये,
पूण्य रज आराध्य है,
सिद्ध साधक साधना है।
जन्म जन्मांतर निरंतर, भक्ति अमृतपान दो।
हे निखिल ब्रम्हांड नायक, एक यह वरदान दो ।।१।।
मोक्ष की इच्छा नहीं है, स्वर्ग केवल धूल है।
छोड़कर अंचल जननी का, छानना जग भूल है।
नित्यशक्ति रूपिणी मा, प्राण में संधान दो।
हे निखिल ब्रम्हांड नायक, एक यह वरदान दो ।।२।।
व्यर्थ जग का राज्य मां की, छत्रछाया छोड़कर,
तुच्छ धनपति का खजाना,
देश से मुंह मोड़ कर।
मृत्यु जीवन में सदा मां,
गोद में ही स्थान दो।
हे निखिल ब्रम्हांडनायक एक यह वरदान दो।
मातृभू के हित अखंडित कर्म निष्ठा ज्ञान दो ।।३।।

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