शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है



शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है।

प्रेम जो केवल समर्पण ही समर्पण जानता है।

और उसमें ही स्वयं की धन्यता बस मानता है।

दिव्य ऐसे प्रेम में ईश्वर स्वयं साकार है।

शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है ।।१।।


देश की ज्वाला जगत की नित जलाना जानती है।

किंतु सुरसरि स्नेह की मधुबन खिलाना जानकी है।

छेड़ती है हृदय वीणा के सभी वे तार है।

शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है ।।२।।


दीप में है स्नेह जब तक वह तभी तक ज्योति देता।

स्नेह से जब शुन्य होता विरत तम को तम कौन करना।

नित्य ज्योतिर्मय हमारा हृदय स्नेहागार है।

शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है ।।३।।


भरत जननी ने किया वात्सल्य से पालन हमारा।

है कृपा इसकी मिला है प्राण तन जीवन हमारा।

भक्ति से हम को समर्पित बस यही अधिकार है।

शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है ।।४।।


कोटी आंखों से निरंतर आज आंसू बह रहे हैं।

आज गणित बंधु दु:सह यातनाएं शह रहे है।

दुख हरे सुख दे सभी की एक यह आचार है।

शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है ।

प्रेम जो केवल समर्पण ही समर्पण जानता है।

और उसमें ही स्वयं की धन्यता बस मानता है।

शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है ।।५।।


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