स्मरणीय दिवस

क्रम संख्या १

महर्षि वाल्मीकि जयंती 

(५ अक्टूबर आश्विन पूर्णिमा)

बचपन में रत्नाकर नाम पाए इस आदि कवि का जन्म आज ही के दिन हुआ था। सप्तर्षियों से ज्ञान पाकर वर्षों घोर तपस्या की। उनके शरीर पर दीमकों ने मिट्टी का पिरामिड के आकार का घर बना लिया। वाल्मीकि ने प्रथम संस्कृत काव्य की रचना की। बाल्मीकि रामायण एक अत्यंत लोकप्रिय ग्रंथ है। सीता जी इन्हीं के आश्रम में रहीं, जहां लव-कुश का जन्म हुआ। बाल्मीकि जु का शूद्र परिवार में जन्म कहा जाता है। उनके ज्ञान व त्याग तपस्या के कारण उन्हें महर्षि का स्थान मिला। आज संपूर्ण समाज में उनकी प्रतिष्ठा है।



क्रम संख्या २

महात्मा गांधी जयंती 

(२ अक्टूबर)

     मोहनदास करमचन्द गांधी का जन्म आज ही के दिन गुजरात में सन १८६९ ई० में हुआ। इंग्लैंड में बैरिस्टरी पास करने के पश्चात उन्होंने देश की स्वतंत्रता आंदोलन में संपूर्ण जीवन लगा दिया। अहिंसा, स्वदेशी तथा सत्याग्रह के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया। उनके आचार-विचार एवं व्यवहार में हिंदू धर्म का प्रभाव सदैव व सर्वत्र दिखाई देता था। वे लंगोटी और चादर धारण कर वर्घा-आश्रम कि एक कुटिया में रहते थे। वे सेवा बस्तियों में भी बहुधा निवास करते थे तथा उनमें रहने वाले बंधुओं एवं भगिनीयों के आर्थिक व सामाजिक उत्थान हेतु सदैव प्रयत्नशील रहे। देश विभाजन न रोक पाने और उसके परिणाम स्वरूप लाखो हिंदुओं की पंजाब और बंगाल में नृशंस हत्या करोड़ों की संख्या में लोगों का अपने पूर्वजों की भूमि से पलायन, साथ ही पाकिस्तान को मुआवजे के रूप में करोड़ों रुपए जाने के कारण है हिंदू समाज में इनकी प्रतिष्ठा गिरी।



क्रम संख्या ३

लाल बहादुर शास्त्री जयंती 

 (2 अक्टूबर)

     रामनगर (काशी) के एक अति सामान्य परिवार में भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म आज ही के दिन सन १९०४ में हुआ। शास्त्री जी अपनी पढ़ाई पूरी कर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। अपनी सादगी, दृढ़ता और श्रेष्ठ चरित्र के लिए विख्यात शास्त्री जी ने १९६५ मे पाकिस्तानी आक्रमण का मुंह तोड़ जवाब दिया और शत्रु को घुटने टेकने के लिए विवश कर दिया। 'जय जवान -जय किसान' का नारा देकर देश की सीमाओं की सुरक्षा के साथ-साथ देश को खाद्यान्न ने के मामले में भी आत्मनिर्भर बनाया।



क्रम संख्या ४

वीर बन्दा वैरागी जयंती 

(२७ अक्टूबर)

     बचपन का नाम लक्ष्मणदेव था। इनका जन्म कश्मीर के पुंछ जिले के राजौरी में हुआ था। एक बार शिकार करते समय हिरनी के मारे जाने व उसके पेट से निकले बच्चे के तड़प-तड़प कर मरने से द्रवित होकर वैराग्य धारण किया और लक्ष्मणदेव से बन्दा वैरागी बन गए। गुरु गोविंद सिंह की रक्षा हेतु पुनः शस्त्र धारण किया। अनेक वैरागी साथ हो गए। सर्वप्रथम दिल्ली लाए जा रहे शाही मुगल खजाने को लूटा। साजबेग की हत्या कर गुरु पुत्रों की हत्या का बदला चुकाया। अनेक किले मुगलों से जीते। गुरु गोविंद सिंह को धोखा देने वाले अली हुसैन तथा गुरु तेग बहादुर के हत्यारे जलालुद्दीन के जन्म स्थान पर आक्रमण कर खूब सामान लूटा। सरहिन्द के सूबेदार बनीर खान के जन्मस्थान कुंजपुरा को लूटा, सरहिन्द को पूर्णरूपेण नष्ट कर दिया। हजारों हिंदू युवक बन्दा की सेना में भर्ती हो गए। सन १७१० तक मुगलों से अनेक किले छीन कर माछीवाड़ा से करनाल तक, पटियाला, गुरदासपुर, पठानकोट पर बंदा का पूर्ण अधिकार हो गया। आठ वर्षों में तमाम अत्याचारी मुगल शासकों के होश ठिकाने लगा दिए। मुगल उनके नाम से थर-थर कांपने लगे। धोखे से एक दिन बन्दा को बंदी बना लिया गया। इस्लाम स्वीकार करने के लिए लालच दिया गया। इन्कार करने पर अमानवीय यातनाएं दी गई। मुगल शासक द्वारा उनकी आंखें फोड़ दी गई। उनके पुत्रों की हत्या कर उनके कलेजे उनके मुंह में ठूंसा गया। इन्हें जंजीरों से बांधकर हाथी के पैरों तले रौंदा गया। अंत में बोटी-बोटी काटा गया। इस प्रकार बन्दा देश-धर्म पर बलिदान हो गए।


क्रम संख्या ५

गोपाष्टमी 

(28 अक्टूबर)

     गोवंश पूजा का यह पर्व भगवान कृष्ण के समय से संपूर्ण देश में अत्यंत श्रद्धा एवं भक्ति के साथ मनाया जाता है। भारत कृषि प्रधान देश है। अतः अपने पूर्वजों ने गोवंश का महत्व समझा। अब तो सारा संसार गाय के महात्म्य को समझ गया है। भगवान कृष्ण ने गो-सेवा की थी, इसलिए वे गोपाल व गोविन्द कहलाए। गाय का दूध व घी अत्यंत गुणकारी व रोगों का विनाशक व निरोधक है। आज रक्त धमनियों में जमकर रक्त प्रवाह को अवरोधित कर देता है। जिसके कारण हृदय रोग की स्थिति आ जाती है। गाय क दूध रक्त को जमने नहीं देता। गोबर से लीपे गये स्थान पर रेडियोधर्मिता का प्रभाव नहीं होता। गोमूत्र से कई प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है।



क्रम संख्या ६

गुरु नानक देव (कार्तिक पूर्णिमा)

     कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा के दिन स्नान का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है। अति प्रातः से ही हिंदू नर-नारी निकटस्थ नदी में स्नान कर दान-पुण्य करते हैं। इसी पुण्यतिथि पर सं० १५२६ को सिख पंथ के संस्थापक एवं प्रथम गुरु नानक देव का जन्म पंजाब में हुआ। ये पैदा होते ही हंस रहे थे। पंजाबी, संस्कृत एवं फारसी का अतिशीघ्र ज्ञान प्राप्त कर लिया। बचपन से ही संतों की संगत में रहने लगे । हर समय ईश्वर आराधना में लीन रहते । विवाह हुआ तथा दो संताने भी हुई, किंतु पारिवारिक मोह माया में नहीं फंसे । वे कहते "जो ईश्वर को प्रेम से स्मरण करे, वही प्यारा बंदा"। उनके हिंदू-मुसलमान दोनों शिष्य बने। देश-विदेश की यात्रा की। मक्का गए वहां काबा की ओर पैर करके सो गए। लोग नाराज होकर जिधर उनका पैर करते, उधर ही काबा दिखाई देता। उन्होंने कहा 'खुदा सब जगह है'। बगदाद पहुंचे वहां का खलीफा जनता का शोषण कर अपार धन जमा किए हुए था। इन्होंने कंकड़ पत्थर इकट्ठा किए। खलीफा द्वारा कारण पूछने पर उत्तर दिया। "यह मरने पर तुम्हारे धन के समान मेरे साथ जाएगा।" खलीफा की बुद्धि ठिकाने आ गयी और उसने जनता पर अत्याचार बंद कर दिया। 70 वर्ष की आयु में स्वर्ग सिधार गए। प्रिय शिष्य भाई लहणा को अंग से लगाया तो लहणा अंगद देव बन गए। उन्हीं को गुरु गद्दी पर बिठाया।



क्रम संख्या ७

शिवाजी द्वारा अफजल खान का वध

(१० नवंबर १६५८)

       सुल्तान आदिल शाह की उपमाता उलिया बेगम ने एक दरवार लगाकर सभी का आह्वान किया कि जिसमें शिवाजी को जिंदा या मुर्दा पकड़ने की हिम्मत हो वह पान का बीड़ा उठाए? अफजल खान ने पान का बीड़ा उठाया। वह 7 फीट लंबा हट्टा-कट्टा सेनापति था। अफजल खान बलवान सेना लेकर चला।
     सबसे पहले उसने शिवाजी की कुलस्वामिनी तुलजापुर की भवानी का मंदिर तोड़ा फिर पंढरपुर की मूर्ति तोड़ी। अफजल खान शिवाजी को मैदान में और शिवाजी उसको पहाड़ी स्थान पर लाना चाहते थे।
     शिवाजी ने अफजल खान को कहलाया कि वह स्वयं में वह बहुत डर गया है और अफजल खान उसके लिए चाचा के समान है। अफजल खान प्रतापगढ़ किले के नीचे जावली के जंगलों में आया और वही शिवाजी से भेंट हुई। भेंट के समय अंगरक्षक दूर थे। शिवाजी ने सिर पर शिरस्त्राण और शरीर पर लौह कवच, हाथ में बघनख और कमर में कटार पहन रखी थी।
     भेंट के समय शिवाजी ने पहले ही बघनख से अफजल खान की आंते बाहर निकाल दीं। अफजल खान द्वारा कटार से किया गया वार लौह कवच में अटक गया। शिवाजी ने झट से उसका सर धड़ से अलग कर तलवार की नोक पर प्रतापगढ़ किले की ओर चले। किले की तोपें छूटी। संकेत पाकर शिवाजी के सैनिकों ने अफजल खान की सेना को संपूर्ण रूप से काट डाला।





क्रम संख्या ८

विजय दिवस 

(१६ दिसंबर १९७१)


     सन १९७१ का भारत-पाकिस्तान युद्ध दोनों के बीच हुआ तीसरा युद्ध था। पहले के दोनों युद्धों में पाकिस्तान को मात खानी पड़ी थी। इस तीसरे युद्ध में तो पाकिस्तान को दबाकर भागना पड़ा और बांग्लादेश में मौजूद उसकी ९३००० सशस्त्र सेना ने भारतीय रणबांकुरों से प्राणों की भीख मांगते हुए हथियार सहित समर्पण कर दिया। १६ दिसंबर १९७१ को जब पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आकर आत्मसमर्पण के पत्र पर हस्ताक्षर किए तो मानो भारत ने मोहम्मद बिन कासिम से लेकर गजनी, गोरी, खिलजी और मुगलों के सारे आक्रमणों का करारा जवाब हमलावरों को दे दिया। यह युद्ध न सिर्फ भारत के इतिहास का बल्कि दुनिया के सैनिक इतिहास का एक स्मरणीय था।



क्रम संख्या ९

गुरु तेग बहादुर बलिदान दिवस

(५ दिसम्बर)
     सिक्ख पंथ के नवम् गुरु 'गुरु तेग बहादुर सिंह' का बलिदान दिल्ली में हुआ था। इनके पिता हरगोविंद सिंह थे। इनका विवाह 13 वर्ष की आयु में हो गया।

     २० मार्च १९६५ को गुरु की गद्दी पर बैठे। औरंगजेब ने गुरुजी के चार शिष्यों को दिल्ली बुलाकर इस्लाम स्वीकार करने को कहा। इन्कार करने पर यातनाएं देकर उन्हें मार डाला। तत्पश्चात गुरु जी को भी औरंगजेब ने पकड़वा लिया। इस्लाम स्वीकार न करने के कारण उनका सिर काट दिया गया। दिल्ली में जिस स्थान पर उनका बलिदान हुआ। कालांतर में उसी स्थान पर शीशगंज गुरुद्वारा का निर्माण हुआ है । 

पावन मन में बसती चरित्र की शोभा
चरित्र की शोभा से घर में सामंजस्य 
घर में सामंजस्य से राष्ट्र में शान्ति।।
राष्ट्र में शान्ति से विश्व में शान्ति ।।




क्रम संख्या १०

रानी लक्ष्मीबाई (१९ नवंबर १८३५)

     अंग्रेजों के विरुद्ध प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की यह वीरांगना बाबा विश्वनाथ की पावन नगरी काशी के अस्सी क्षेत्र में पैदा हुई। बचपन का नाम मनु था। बचपन में ही अस्त्र-शस्त्र चलाने एवं घुड़सवारी की शिक्षा प्राप्त की। ७ वर्ष की अल्पायु में ही झांसी के महाराज गंगाधर राव से विवाह हुआ। १८५३ में महाराज ने आनंद राव को गोद लिया, नाम रखा दामोदर राव। २१ नवम्बर १८५३ को गंगाधर राव का देहान्त हो गया। तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड डलहौजी ने झांसी राज्य हड़पने का निश्चय किया किंतु रानी ने दृढ़तापूर्वक कहा, "मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी"।

     रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहब पेशवा तथा तात्या टोपे आदि नेताओं ने अंग्रेजों की दासता से भारत माता को मुक्त करने की योजना बनाई और देश के गांव-गांव तक स्वतंत्रता की अलख जगाई। फलस्वरूप १८५७ में देश के कोने-कोने से अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष आरंभ हो गया।

     महाराज के स्वर्गवास के पश्चात झांसी का प्रशासन अपने हाथों में लेकर महारानी लक्ष्मीबाई में काफी सुधार किया। पुरुष देश में वह सैन्य संचालन करती थी। पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं की भी सेना गठित की। यह विश्व इतिहास का एक नया पृष्ठ है। झांसी के घर-घर में स्वतंत्रता संग्राम की तैयारी हो रही थी। २३ मार्च १८५८ ह्यूरोज के नेतृत्व में विशाल अंग्रेज सेना ने झांसी पर आक्रमण कर दिया। रानी पीठ पर दत्तक पुत्र दामोदर राव को बांधकर घोड़े पर सवार हो झांसी की सेना के साथ स्वयं युद्ध भूमि में कूद पड़ी। युद्धभूमि में रानी का शौर्य, पराक्रम तथा सैन्य संचालन देखकर ही सर ह्यूरोज ने लिखा, " विप्लवकारियों की सबसे बहादुर और सबसे महान सेनापति झांसी रानी थी। 

     दुर्भाग्यवश झांसी की रानी पराजित हुई। रानी कुछ योद्धाओं के साथ झांसी से निकल गई। मार्ग में रानी का घोड़ा मर गया। काल्पी मे रानी, तात्या टोपे व राव साहब से मिलीं। वे लोग ग्वालियर पहुंचे। ग्वालियर में अंग्रेजों से पुनः भीषण युद्ध हुआ। युद्ध में रानी घायल हो गई और बाबा गंगादास की कुटी में १८ जून १८५८ को स्वर्ग सिधार गई।



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