संगठन व सेवा के 100 वर्ष



आओ बनाएं समर्थ भारत 

     1925 की विजयदशमी विक्रम संवत 1982 को शुरू हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण कर लिए हैं। संघ आज विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक संघगठन बन गया है, इसलिए स्वाभाविक ही संघ को जानने की उत्सुकता समाज में ब ढ़ी है। संघ को जानना है तो संघ के सस्थापक डाॅ. केशव बलिराम हेडगेवार जी को जानना आवश्यक है। वे जन्मजात देशभक्त थे। स्वाधीनता आंदोलन के सभी प्रयासों में वे सक्रिय थे। इसलिए दो बार (1921 व 1930) कारावास भी सहना पड़ा।


संघ स्थापना 
     संघ की स्थापना ऐसे समय में हुई जब हमारा देश स्वाधीनता के लिए संघर्ष कर रहा था। डॉ. हेडगेवार का स्पष्ट मत था कि राष्ट्र की स्वतंत्रता उनके पश्चात परम वैभव की प्राप्ति तथा समाज की विविध समस्याओं का समस्थाई स्थाई समाधान केवल हिंदू समाज के संगठित होने से होगा। उन्होंने जाति ,भाषा, वेश-भूषा, प्रान्त आदि विविधताओं को ही भेद मानकर संगठित हुए हिंदू समाज को हिंदुत्व के आधार पर संगठित करने का विचार कर संघ की स्थापना की।  अपने यहां हिंदुत्व कोई उपासना पद्धति या Religion नहीं है, यह जीवन दृष्टि है और उस दृष्टि के आधार पर विकसित हुई जीवन पद्धति है। इस भगीरथ और महत्वपूर्ण कार्य हेतु वैसे ही गुणवान कार्यकर्ता आवश्यक थे। ऐसे कार्यकर्ता निर्माण करने के लिए डॉक्टर हेडगेवार ने एक सरल किंतु अत्यंत परिणामकारक दैनन्दिन 'शाखा' की पद्धति संघ में विकसित की।


व्यक्तित्व निर्माण की कार्यपद्धति 
     संघ कार्य के प्रथम चरण में संगठन खड़ा करना ही प्रमुख कार्य था, और उस हेतु व्यक्ति निर्माण की प्रक्रिया को गतिमान करना आवश्यक था। व्यक्ति निर्माण हेतु चलने वाली नित्य शाखा में स्वयंसेवक अत्यंत सामान्य दिखने वाले कार्यक्रम - खेल, व्यायाम, योगासन, गीत, कहानी, प्रार्थना आदि करते हैं, जो शाखा के बाहर भी समाज में किए जाते हैं। यही कार्यक्रम स्वयंसेवकों में साहस, धैर्य, शक्ति, राष्ट्रीय चरित्र्य, अनुशासन, देशभक्ति, सेवा आदि गुना का निर्माण करते हैं। इन कार्यक्रमों की निरंतरता ही स्वयंसेवकों के संपूर्ण जीवन की दिशा और प्राथमिकताएं बदल देती है। तभी तो संघ सामान्य लोगों का असामान्य संगठन बना हुआ है। इसी कार्य पद्धति के कारण जो स्वयंसेवक निर्माण हुए, उनके आचरण के कारण संघ की समाज जीवन में सकारात्मक छवि बनी हुई है। संघ यानी देशभक्ति, नि: स्वार्थ सेवा, अनुशासन, यह परिचय समाज के मन में स्थापित हुआ है।


संघ कार्य का विस्तार 
     किसी भी श्रेष्ठ कार्य को उपहास, उपेक्षा,विरोध और फिर स्वीकार्यता के चरणों से गुजरना पड़ता है, वैसे ही संघ को भी इन सभी चरणों से गुजरना पड़ा। किंतु श्रेष्ठ अधिष्ठान, उत्तम कार्यपद्धति और स्वयंसेवकों के निस्वार्थ देशभक्ति से भरे, समरसता युक्त आचरण के कारण संघ समाज का विश्वास जीतने में सफल हुआ है। आज संघ का कार्य कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से अरुणाचल प्रदेश तक भारत के हर कोने है तक पहुंच गया है। आज संपूर्ण भारत के कुल 924 जिलों में से 98.3 प्रतिशत जिलों में संघ की शाखाएं चल रही है। कुल 6618 खण्डों में से 92.3 प्रतिशत खण्डों (तालुका) में, कुल 58393 मंडलों मंडल ( मंडल यानी 10 - 12 ग्रामों का एक समूह) में से 52.2 प्रतिशत मंडलों में 51740 स्थानों पर 83129 दैनिक शाखाएं तथा अन्य 26460 स्थानों पर 32147 साप्ताहिक मिलनों के माध्यम से संघ कार्य का देशव्यापी विस्तार हुआ है, जो लगातार बढ़ रहा है। इन 83129 दैनिक शाखाओं में से 59 प्रतिशत शाखाएं छात्रों की है तथा शेष 41 प्रतिशत व्यवसाय स्वयंसेवकों की शाखाएं हैं।


सेवा कार्य 
     देशभक्ति से ओत-प्रोत स्वयंसेवक समाज के कष्ट देखते ही दौड़ पढ़ते हैं, तभी आज किसी भी प्राकृतिक अथवा अन्य आपदाओं के समय वहां तुरंत पहुंचते हैं। केवल आपदा के समय ही नहीं, तो नियमित रूप से समाज में दिखने वाले अभाव, पीड़ा, अपेक्षा दूर करने हेतु स्वयंसेवक अपनी क्षमतानुसार सर्वत्र प्रयास करते हैं। आज संघ के स्वयंसेवक समाज की सहयोग से स्वास्थ्य, शिक्षा, संस्कार और स्वावलंबन के विषयों पर ग्रामीण और नगरीय क्षेत्र में 129000 सेवा कार्य व गतिविधियां चला रहे हैं। इसके अतिरिक्त स्वयंसेवक प्रशासन अथवा सरकार पर निर्भर न रहते हुए अपने ग्राम का सर्वांगीण विकास सभी ग्रामवासी मिलकर करें, इस उद्देश्य से 'ग्राम विकास' का कार्य भी कर रहे हैं। अच्छी नस्ल की गायों का संरक्षण, संवर्धन, नस्ल सुधार करते हुए गोबर आधारित जैविक खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षण, प्रबोधन एवं प्रोत्साहन देने की दृष्टि से गौसेवा - गौसंवर्धन का कार्य भी करते हैं।


पंच परिवर्तन 
     वैसे तो स्वयंसेवक नियमित रूप से समाज परिवर्तन और समस्याओं का समाधान करने के लिए सतत् सक्रिय रहते हैं, लेकिन शताब्दी वर्ष के पश्चात पांच विषयों पर सज्जन शक्ति के सहयोग से जन-जागरण के लिए विशेष प्रयत्न करेंगे। जिन्हें पंच परिवर्तन कहा गया है वे पांच विषय इस प्रकार हैं - 

(1) सामाजिक समरसता 
     दुर्भाग्य से हमारे ही समाज के कुछ वर्गों को अछूत मानकर शिक्षा, सुविधाओं और सम्मान से वंचित रखा गया। यह सरासर अन्यायपूर्ण और अमानवीय है। इस अन्याय को दूर कर सबको साथ लेकर आगे बढ़ने के प्रयास 'सामाजिक समरसता' के माध्यम से आरंभ हुए हैं। हमारा समरस हिंदू समाज विभिन्न जातियों के नाम से जाना जाता है, लेकिन इसके कारण कभी भी समाज में छुआछूत, भेदभाव नहीं रहा। संघर्ष काल में आई इस विकृति का कुछ निहित स्वार्थी तत्व जातीय विद्वेष बढ़ाकर समाज को बांटने का कार्य करते रहते हैं। इसलिए समाज से छुआछूत और भेदभाव दूर करने हेतु अपने मित्र -परिवार में सभी जाति समुदाय के लोगों को शामिल करें और समय-समय पर पारिवारिक कार्यक्रमों में सभी को सम्मिलित करने का प्रयास करें। अपने घर या कार्यस्थल पर सहयोगी और सेवा देने वाले सभी से हमारा व्यवहार स्नेहिल हो तथा उन्हें किसी त्योहार पर परिवार सहित सम्मानपूर्वक आमंत्रित करें तथा उनके घर पर भी कभी-कभी आना-जाना हो। सभी जाति एवं समुदाय के प्रमुख एक साथ बैठकर कुछ सांझी समस्याओं और चुनौतियों पर विचार करने तथा उससे उबरने के सामूहिक प्रयास करें, यह आवश्यक है।

(2) पर्यावरण संरक्षण
     सृष्टि हमारी, सभी प्राणियों की माॅं है। परंतु भौतिकतावादी जीवन के बढ़ते प्रभाव के कारण प्रकृति का शोषण ही होता रहा है। पश्चिम के विकास मानको (paradigm) के आधार पर हुए विकास से केवल 500 वर्षों में ही सृष्टि का पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ गया है। उस बिगड़े संतुलन को फिर से ठीक करने के प्रयास में जन सहभाग बढ़ाकर 'पर्यावरण' के बारे में जागृति और सक्रियता लाने की आवश्यकता है। अपने जीवन में न्यूनतम तीन बातें तो हम सभी कर ही सकते हैं पानी बचाना, सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग नहीं करना और हरियाली के लिए पेड़ लगाना। इससे मनुष्य में एक मानवीयता भी आएगी और पर्यावरण में सुधार भी होगा। इसके लिए जो सामूहिक उपक्रम चलते हैं उनमें भाग लेना और अपने घर में भी यह करना।

(3) कुटुंब प्रबोधन 
     भारतीय संस्कृति और परंपरा में कुटुंब का विशेष महत्व है। भारतीय आध्यात्मिक दृष्टि से यह कुटुम्ब यानी "मैं से हम की यात्रा" का पहला कदम है। अभी शहरीकरण और जीवन की आपाधापी बढ़ने के कारण कुटुम्ब छोटे हुए हैं, इसलिए परिवार के सब लोगों ने सप्ताह में एक बार साथ बैठना निश्चित समय पर घर पर रहना, श्रद्धानुसार भजन करना, घर में बने हुए भोजन करना और उसके बाद तीन-चार घंटा गपशप करना। उसमें हम कौन हैं, हमारे पूर्वज कौन थे, हमारी कुल रीति क्या है, अपने घर की रीति क्या है, क्या भद्र है, क्या अभद्र है? आज के समय में क्या-क्या आवश्यक है? इसके आधार पर अपने घर में सबसे सहमति बनाकर उतनी बातों को लागू करना।

(4)स्व आधारित जीवन 
     किसी भी देश के विकास के लिए, उस देश के जो संसाधन है, उसके आधार पर विकास के मार्गों को प्रशस्त करना चाहिए। "स्व आधारित जीवन" का तात्पर्य यह है कि आर्थिक एवं सांस्कृतिक सभी आयामों में हमें स्वयं के पैरों पर खड़ा होना चाहिए। स्वदेशी जीवन शैली प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक परिवार के स्तर पर अपनानी होगी, तभी भारत आत्मनिर्भर बनेगा। अपनी मातृभाषा, स्वभूषा, संस्कृति और परंपराओं पर स्वाभिमान रखकर उनको व्यवहार में लाना चाहिए।

(5)नागरिक कर्तव्य बोध 
हर हालत में संविधान, नियम, कानून और अनुशासन का पालन करके चलना। कोई भड़काऊ बात हो गई तो भी कानून हाथ में नहीं लेना। गैर कानूनी आचरण नहीं करना। आज देश के लिए 24 घंटा जीने की जरूरत है। छोटी-छोटी बातों में भी समाज का, देश का, सबका ख्याल रखना। मेरे से शुरू होगा, मेरे घर से शुरू होगा तो समाज में आएगा, समाज में आएगा तो भारत में आएगा, तभी भारत सशक्त राष्ट्र बनेगा।

आवाहन 
     गत 100 वर्षों से यह महायज्ञ अविरत रूप से चल रहा है। संपूर्ण समाज को संगठित कर देश के सामने आने वाली सभी समस्याओं और चुनौतियों का समाधान करना, समाज में स्थाई परिवर्तन लाने हेतु समाज की व्यवस्थाओं का युगानुकुल निर्माण करना, यह संघ कार्य का अगला चरण है। किंतु अपना देश बहुत विशाल है, और कोई एक संगठन इसमें स्थाई परिवर्तन नहीं ला सकता। इस हेतु सभी मतभेद बुलाकर, सभी को एक साथ आकर काम करना होगा। इसके लिए सज्जन शक्ति की सक्रियता और सहयोग आवश्यक है। अपनी पवित्र मातृभूमि को पुनः विश्व गुरु बनाने हेतु आज पुरुषार्थ करने का समय है।
     आप सभी माता, बंधु भगिनियों से अपेक्षा है कि इस राष्ट्र कार्य में आप सभी अपनी रुचि वह क्षमता के अनुसार सक्रिय भूमिका निभाए। भारत माता के इस जगन्नाथ के रथ को खींचना हेतु सभी के हाथ और शक्ति लगे। 
     आइए इस अमृत काल में सभी मिलकर अपने भगीरथ प्रयास से भारत माता को परम वैभव तक पहुंचाएं। 
भारत माता की जय


टिप्पणियाँ