समाज है आराध्य हमारा, सेवा है आराधना

Geet Sangham: समाज है आराध्य हमारा, सेवा है आराधना
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टिप्पणियाँ

Rajnish Gupta ने कहा…
भारत मां की संताने हम शीश झुकाना क्या जाने।
धरा उठा ले गगन झुका दे और चले सीना ताने।
हम ही कृष्ण के चक्र सुदर्शन हम अर्जुन के तीर हैं।
ध्रुव प्रहलाद भरत के भाई हम अभिमन्यु वीर हैं।
हम हंसते हैं तूफानों में रोना-धोना क्या जाने।
धरा उठा ले गगन उठा झुका दे और चले सीना ताने।।१।।

हम प्रताप के पुण्य धरोहर हम ही शिवा की शान हैं।
हम ही श्री राम के अग्निबाण हैं चंद्रगुप्त के मान हैं।
गुरु गोविंद के वंशज है हम धर्म बदलना क्या जाने।
धरा उठा ले गगन झुका दे और चले सीना ताने।।२।।

ये धरती अपनी माता है हम इस की संतान हैं।
इस की सेवा में ही अर्पित करते तन मन प्राण है।
इसकी निशदिन करे आरती और तराने क्या जाने।
धरा उठा ले गगन झुका दे और चले सीना ताने।
भारत मां की संताने हम शीश झुकाना क्या जाने।
धरा उठा ले गगन झुका दे और चले सीना ताने
Unknown ने कहा…
समाज है आराध्य हमारा, सेवा है आराधना
Unknown ने कहा…
सुंदर गीत बेहतर प्रस्तुतिकरण