भगवान गणेश सब देवों में प्रथम पूज्य देव हैं। मान्यता है कि हर शुभ काम से पहले गणेश जी की पूजा करने से समस्त विघ्नों का नाश होता है और जीवन में खुशियां आती है। तभी तो कहा गया है :
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नम कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
अर्थात् हे भव्य शरीर, वक्र सूंड, सूर्यो के चमक वाले गणेशजी, मेरे सारे कर्मों को विघ्नों से हमेशा मुक्त करते रहना।
गणेश जी की पूजा में दूर्वा व मोदक का विशेष महत्व है, लेकिन इनकी पूजा में तुलसी पत्र वर्जित है। गणेश जी की तीन परिक्रमा करने का विधान है। कहते हैं कि परिक्रमा करते समय यदि भक्त अपनी इच्छाओं को दोहराये तो वे भक्तों की मनोकामना जरूर पूरी करते हैं। अगर आप विधिवत पूजा विधान नहीं जानते, तो रोजाना गणेश जी की आरती भी कर सकते हैं। घर में यदि वास्तुदोष है तो गणेश जी को रोजाना दूर्वा चढ़ावे। सब मंगल होगा।
।। गणेश जी की आरती ।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ।।
जय गणेश जय गणेश..........
एकदंत दयावंत, चार भुजाधारी ।
मस्तक सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ।।
जय गणेश जय गणेश...........
अंधन को आंख देत,कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ।।
जय गणेश जय गणेश..........
हार चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा।।
जय गणेश जय गणेश............
दीनन की लाज राखो, शंभू सुतवारी।
कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी।।
जय गणेश जय गणेश.........
सूर श्याम शरण आए, सफल की जय सेवा।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ।
।। २ ।।
।। लक्ष्मी संग विष्णु की पूजा ।।
धन और संपत्ति की देवी है मां लक्ष्मी। इनकी पूजा का उत्तम समय होता है- मध्यरात्रि, लेकिन आप नित्य सुबह शाम इनकी पूजा कर सकते हैं। कहते हैं कमल के आसन पर बैठी मां लक्ष्मी जिनकी हाथों में धन बरस रहा हो, उनकी नित्य पूजा से घर में समृद्धि आती है। लक्ष्मीजी के समक्ष घी का दीपक जलाकर रोजाना एक गुलाब या अन्य गुलाबी फूल अर्पित करें और अष्टगंध इनकी चरणों में अर्पित करें। लक्ष्मी के आने के बाद बुध्दि विचलित ना हो इसके लिए लक्ष्मीजी के साथ गणेश की पूजा भी करें। साथ ही भगवान विष्णु की भी पूजा करें जिससे माँ शीघ्र प्रसन्न होती हैं। लक्ष्मी जी के मंत्रों का जाप स्फटिक की माला से करना शुभ होता है। मां लक्ष्मी को कमल प्रिय है। इस फूल को पाँच दिनों तक जल छिड़ककर भी पुनः चढ़ा सकते हैं।
।।लक्ष्मी जी की आरती।।
ऊॅ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशदिन सेवा, हरि विष्णु विधाता।। ऊॅ जय ।।
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही हो जग माता।
सूर्य-चंद्र ध्यावत, नारद ऋषि गाता।। ऊॅ जय ।।
दुर्गा रूप निरंजन, सुख-संपति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता।। ऊॅ जय ।।
तुम पाताल निर्वासित, तुम ही शुभदाता ।
कर्म प्रभाव प्रकाशिनि, भवनिधि के त्राता ।। ऊॅ जय ।।
जिस घर में तुम रहती, सब सद्गुण आता ।
सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता ।।ॐ जय ।।
तुम बिन यज्ञ ना होवे, बस्त्र ना कोई पाता ।
खानपान का वैभव, सब तुमसे आता ।। ॐ जय ।।
शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता ।। ॐ जय ।।
श्री महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई जन गाता ।
उर आनंद समाता, पाप उतर जाता ।। ॐ जय ।।
ऊॅ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता ।
।। ३ ।।
।। विष्णु जी की आरती ।।
ओम जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट, क्षण में दूर करे।।1।।
ओम जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपति घर आवे, कष्ट मिटे तन का।।2।।
ओम जय जगदीश हरे।
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिना और न दूजा, आस करूं मै जिसकी।।3।।ओम जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी।।4।।
ओम जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।
मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भरता।।5।।
ओम जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राण पति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति।।6।।
ओम जय जगदीश हरे।
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे।।7।।
ओम जय जगदीश हरे।
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा।।8।।
ओम जय जगदीश हरे।
श्री जगदीश जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपति पावे।।9।। ओम जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनो के संकट, क्षण में दूर करे।।
ऊँ जय जगदीश हरे।
।। मानस पूजा का भी फल ।।
सौम्य स्वरूप वाले भगवान विष्णु जगत के पालनहार हैं। इनकी उपासना, सुख, आनंद, प्रेम, शांति, के साथ बल देने वाली मानी जाती है। वैसे तो शास्त्रों में विष्णु पूजा के कई विधि विधान बताए गए हैं लेकिन आप पूजा की कोई विधि नहीं जानते, तो मानस पूजा से भी भगवान विष्णु को प्रसन्न कर सकते हैं। विष्णु जी की यह पूजा मन के भाव से की जाती है। खासतौर पर गुरुवार और एकादशी तिथि पर मानस पूजा का फल पूजा सामग्रियों से की गई पूजा से भी अधिक शुभ माना गया है। इसमें मंत्रों के द्वारा उनकी पूजा करने का विधान है। अगर कुछ भी नहीं आता हो, तो "ओम नमो नारायणाय" या "ओम नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करके भी विष्णु जी को प्रसन्न किया जा सकता है।
विष्णु जी को सभी रंगों के फूल अर्पित किए जाते हैं।त लेकिन पीतांबर प्रिय होने के कारण पीले रंग के फूल से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं। विष्णु जी की चार परिक्रमा करने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
।। ४ ।।
।। महादेव की आरती ।।
ओम जय शिव ओंकारा, हर शिव ओंकारा।
ब्रम्हा, विष्णु, सदाशिव, अर्धांगी धारा ।।1।।
卐 ओम जय शिव ओंकारा卐
एकानन, चतुरानन, पंचानन राजे।
हंसासन, गरुड़ासन, वृषवाहन साजे ।।2।।
卐जय शिव ओंकारा卐
दो भुज, चार चतुर्भुज, दस भुज से सोहे।
तीनों रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे।।3।।
卐जय शिव ओंकारा卐
अक्षमाला, वरमाला, मुंडमाला धारी।
चंदन मृग मद सोहे, भाले शशि धारी।।4।।
卐जय शिव ओंकारा卐
श्वेतांबर, पीतांबर, बाधांबर अंगे।
सनकादिक, ब्रह्मादिक भूतादिक संगे।।5।।
卐जय शिव ओंकारा卐
कर के मध्य कमंडलु, चक्र त्रिशूल धरता।
जगकर्ता जगहर्ता जगपालन कर्ता।।6।।
卐जय शिव ओंकारा卐
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर में शोभित, ये तीनों एका।।7।।
卐जय शिव ओंकारा卐
त्रिगुण शिव की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपति पावे।।8।।
卐जय शिव ओंकारा卐
।। भोले भंडारी को चाहिये बिल्वपत्र ।।
भोलेनाथ को देवों के देव यानी महादेव कहा जाता है, जो सहज ही प्रसन्न होने वाले देव हैं। कहते हैं कि शिव आदि और अनंत है। शिव ही एकमात्र ऐसे देवता हैं, जिनको लिंग रूप में भी पूजा जाता है। भगवान शिव को अनेक ऐसी चीजें अर्पित की जाती है, जो किसी अन्य देवता को नहीं चढ़ाई जाती, जैसे आक बिल्वपत्र, भांग आदि। शिवजी को कनेर और कमल का फूल भी प्रिय है। सफेद रंग के फूलों में आक और धतूरा से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं, लेकिन केतकी, केवड़े का फूल, तुलसी और हल्दी इनकी पूजा में निषेध है। पूजा के पश्चात शिवजी की आधी परिक्रमा करने का विधान है।
शास्त्रों के अनुसार, बिल्वपत्र छह माह तक बासी नहीं माने जाते हैं। अतः इन्हें जल छिड़ककर शिवलिंग पर अर्पित किया जा सकता है।
।। ५ ।।
।।दुर्गा जी की आरती।।
जय अंबे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी ।।1।।
जय अंबे गौरी ।।
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दो नैना, चंद्र बदन निको ।।2।।
जय अंबे गौरी ।।
कनक समान कलेवर ,रक्ताम्बर राजे ।
रक्त पुष्प गलमाला, कंठन पर साजे ।।3।।
जय अंबे गौरी ।।
केहरी वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनि-जन सेवक, तिनके दुखहारी ।।4।।
जय अंबे गौरी ।।
कानन कुंडल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योति ।।5।।
जय अंबे गौरी ।।
शुंभ-निशुंभ विदारे, महिषासुर-घाति।
भूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ।।6।।
जय अंबे गौरी ।।
चंड मुंड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करें ।।7।।
जय अंबे गौरी ।।
ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमलारानी ।
आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी ।।8।।
जय अंबे गौरी ।।
चौसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरू ।
बाजत ताल मृदंगा और बाजत डमरू ।।9।।
जय अंबे गौरी ।।
तुम हो जग की माता, तुम ही हो भरता ।
भक्तन की दुख हर्ता, सुख संपत्ति कर्ता ।।10।।
जय अंबे गौरी ।।
भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी ।
मनोवांछित फल पावत, सेवक नर-नारी ।।11।।
जय अंबे गौरी ।।
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ।।12।।
जय अंबे गौरी ।।
मां अंबे जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपति पावे ।।13।।
जय अंबे गौरी ।।
।। मां को चढ़ाएं गुड़हल का फूल ।।
दुर्गा शक्ति का प्रतीक है और इनका शुभ दिन है शुक्रवार । इस दिन दुर्गा जी और उनके सभी अवतारों की पूजा की जाती है । माता के पूजन में लाल रंग का विशेष महत्व है । इसलिए मां को गुड़हल व गुलाब खास पसंद है । माताजी को शहद मिला दूध चढ़ाएं । अगर आप कुछ ज्यादा नहीं जानते, तो नावार्ण मंत्र ' ऐं हीं क्लीं चामुंडाए विच्चै ' की कम से कम एक माला या 11 मंत्र जाप करके भी मां शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं ।
।। ६ ।।
।। सरस्वती जी की आरती ।।
कंजल पूरित लोचन भारे, स्तन युग शोभित मुक्त हारे ।
वीणा पुस्तक रंजित हस्ते, भगवती भारती देवी नमस्ते ।।
ऊँ जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता ।
सद्गुण वैभव शालिनी त्रिभुवन विख्याता ।।1।।
ओम जय सरस्वती माता ।।
चंद्रबदनी पद्मासिनी ध्युति मंगलकारी ।
सोहे शुभ हंस सवारी अतुल तेज धारी ।।2।।
ओम जय सरस्वती माता ।।
बाएं कर में वीणा दायें करमाला ।
शीश मुकुट मणि सोहे गल मोतियन माला ।।3।।
ओम जय सरस्वती माता ।।
देवी शरण जो आए उनका उद्धार किया ।
पैठि मंथरा दासी रावण संहार किया ।।4।।
ओम जय सरस्वती माता ।।
विद्याज्ञान प्रदायिनी ज्ञान प्रकाश भरो ।
मोह अज्ञान के बिरथा जग से मात हरो ।।5।।
ओम जय सरस्वती माता ।।
धूप, दीप, फल, मेवा मां स्वीकार करो ।
ज्ञान चक्षु दे माता जग निस्तार करो ।।6।।
ओम जय सरस्वती माता ।।
मां सरस्वती जी की आरती जो कोई जन गावे ।
हितकारी सुखकारी ज्ञान भक्ति पावे ।।7।।
ओम जय सरस्वती माता ।।
।। हर दिन सरस्वती वंदना ।।
बसंत पंचमी यानी सरस्वती वंदना का दिन । इस दिन विधि-विधान के साथ मां की वंदना तो सभी करते हैं, लेकिन आप चाहते हैं कि विद्या की देवी सरस्वती की कृपा आपके ऊपर हमेशा बनी रहे, तो रोजाना सरस्वती जी को सफेद या पीले रंग का फूल अर्पित करें । इसके साथ सरस्वती वंदना भी करें । इसी से मां प्रसन्न हो जाती है । हर दिन मां का स्मरण करते हुए अगर इस मंत्र का 11 बार भी जप कर लें, तो मां सरस्वती प्रसन्न हो जाती है । यह मंत्र है -
" या देवी सर्वभूतेषु विद्या रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।"
अथवा
' ऊॅ श्री सरस्वत्यै नमः '
।। ७ ।।
।। श्री कृष्ण जी की आरती ।।
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ।।
गले में वैजयंती माला, बजावे मुरली मधुर बाला, श्रवण में कुंडल छलकाला,
नंद के नंद, श्री आनंद कंद, मोहन बृज चंद,
राधिका रमण बिहारी की ।
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ।।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली, लतन में ठाड़े वनमाली,
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की ।
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ।।
कनकमय मोर मुकुट बिलसे, देवता दर्शन को तरसे, गगन सों सुमन राशि बरसे,
बजे मूरचंग, मधुर मृदंग, ग्वालानी संग,
अतुल रति गोप कुमारी की । श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ।।
जहां से प्रगट भई गंगा, कलुष कलि हरिणी श्री गंगा,
स्मरण से होत मोह भंगा, बसी शिव शीश,
जटा के बीच, हरै अद्य कीच,
चरण छवि श्री बनवारी की । श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ।।
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन वेणु,
चहु दिसि गोपि ग्वाल धनु,
हसत मृद मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद,
टेर सुनो दीन भिखारी की । श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ।।
।। कृष्णा पूजा से सुख-सौभाग्य ।।
सारे देवताओं में सबसे ज्यादा श्रृंगार प्रिय श्री कृष्ण है । कहते हैं भगवान श्री कृष्ण की नियमित पूजा करने से घर में सुख-संपति व धनधान्य आता है । पूजा करते समय मोर मुकुट व पसंद के फूलों से इनका श्रृंगार करें । कुमुद, मालती, नंदिक, पलास वह बनमाला के फूल इनको विशेष प्रिय है । भोग में मक्खन मिश्री चढ़ाएं । शास्त्रों में बताए गए श्री कृष्ण के प्रभावी मंत्र आपको सुख सौभाग्य दिलाते हैं, जैसे- 'कृं कृष्णाय नमः' इस मंत्र का जाप प्रातः काल स्नानादि के पश्चात 108 बार करना चाहिए। इससे घर में सुख शांति आती है।
तुलसी भवानीहि पूजि पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली ।।
सो. : जानि गौरि अनुकूल, सिय हिय हरषु न जाई ।
मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे ।।
।। राम रक्षा स्तोत्र का पाठ ।।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को श्री विष्णु का द्वादश कलावतार माना जाता है । कहते हैं रामनवमी के दिन भगवान श्री राम की पूजा अर्चना करने से विशेष पुण्य मिलता है । इस दिन 'श्री रामायण नमः' कहते हुए भगवान राम को अष्टगंध का तिलक लगाएं । फिर फूल, नैवेद्य, धूप व दीप अर्पित करें । आरती के पश्चात परिक्रमा करें । पूजन के समय 'ऊॅ जानकी रामभ्याम् नमः' मंत्र का जप करते रहें इससे घर में सुख शांति बनी रहती है ।
यही नहीं रामदूत हनुमान की पूजा करने से पहले भी श्री राम का स्मरण करना चाहिए । श्री हनुमान जयंती के विशेष अवसर, मंगलवार या शनिवार के दिन श्री राम जी की गंध, अक्षत, फूल धूप, व दीप से पूजा कर राम स्तुति का ध्यान कर हनुमान जी की पूजा करें ।इसके अलावा राम रक्षा-स्तोत्र का पाठ करें । राम जी के साथ हनुमान जी की भी कृपा प्राप्त होती है ।
।। ९ ।।
|| हनुमान जी की आरती ||
आरती की जय हनुमान लला की।। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
दे वीरा रघुनाथ पठाए ।
पेठि पताल तोरि यम कारे।
अहिरावन की भुजा उखारे।।
बाए भुजा असुरदल मारे।
दाहिने भुजा, संतजन तारे।। आरती की जय हनुमान लला की ।।
सुर-नर,मुनि जन आरति उतारे।
जय जय जय हनुमान ऊंचारे।
कंचन थार कपूर लौ छाई।
आरती करत अंजना माई। आरती की जय हनुमान लला की।।
जो हनुमान जी की आरती गावै।
बसि बैकुंठ परम पद पावै ।।
आरती की जय हनुमान लला की।। आरती की जय हनुमान लला की।।
आरती कीजै हनुमान लला की । दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।।
जाके बल से गिरिवर कांपे ।
रोग दोष जाके निकट न झांके ।।
अंजनी पुत्र महा बलदाई ।
संतन के प्रभु सदा सहाई ।। आरती की जय हनुमान लला की ।।
लंका जारी सिया सुधि लाए ।।
लंका सौ कोटि समुद्र सी खाई ।
जात पवनसुत बार न लाई ।। आरती की जय हनुमान लला की ।।
लंका जारी असुर सिंह हारे ।
सियाराम के काज संवारे ।।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे ।
आनि सजीवन प्राण उचारे ।।
आरती की जय हनुमान लला की ।।
|| भज राम नाम मिलेंगे हनुमान ||
श्रीराम के अनन्य भक्त हनुमान जी शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवी-देवताओं में से एक हैं। इनकी कृपा प्राप्त होते ही भक्तों के सभी दुख दूर हो जाते हैं। राम नाम का नित स्मरण कर के भी इनकी कृपा पायो जा सकती है। हनुमानजी की पूजा में लाल फूल, सिंदूर घी अथवा चमेली के तेल का दीपक ही उत्तम होता है। हनुमान जी का जन्म मंगलवार को हुआ है। अतः मंगलवार के दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है। मंगलवार के दिन हनुमानजी की पूजा से सभी मनवांछित फल प्राप्त हो जाते हैं। हनुमानजी की तोन परिक्रमा करने का विधान है। ऐसा करने पर हनुमान जी की कृपा जल्दी प्राप्त हो जाती है।शास्त्रों के अनुसार मां अंजना और पिता केसरी के जयकारे से भी हनुमानजी शीघ्र प्रसन्न होते हैं। मंगलवार और शनिवार इनका प्रिय दिन है। इन दोनों दिनों में मंदिर में जाकर हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाना विशेष फलदायी माना गया है।
कहा जाता है कि हनुमान जी के उनकी पत्नी के साथ दर्शन करने के बाद घर में चल रहे पति पत्नी के बीच के सारे तनाव खत्म हो जाते हैं।
हनुमान जी की पत्नी के साथ दुर्लभ फोटो...
आंध्रप्रदेश के खम्मम जिले में बना हनुमान जी का यह मंदिर काफी मायनों में खास है। यहां हनुमान जी अपने ब्रह्मचारी रूप में नहीं बल्कि गृहस्थ रूप में अपनी पत्नी सुवर्चला के साथ विराजमान है।
हनुमान जी के सभी भक्त यही मानते आए हैं की वे बाल ब्रह्मचारी थे और वाल्मीकि, कम्भ, सहित किसी भी रामायण और रामचरित मानस में बालाजी के इसी रूप का वर्णन मिलता है। लेकिन पराशर संहिता में हनुमान जी के विवाह का उल्लेख है। इसका सबूत है आंध्र प्रदेश के खम्मम ज़िले में बना एक खास मंदिर जो प्रमाण है हनुमान जी की शादी का।
यह मंदिर याद दिलाता है रामदूत के उस चरित्र का जब उन्हें विवाह के बंधन में बंधना पड़ा था। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि भगवान हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी नहीं थे। पवनपुत्र का विवाह भी हुआ था और वो बाल ब्रह्मचारी भी थे।
कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण ही बजरंगबली को सुवर्चला के साथ विवाह बंधन में बंधना पड़ा। दरअसल हनुमान जी ने भगवान सूर्य को अपना गुरु बनाया था।
हनुमान, सूर्य से अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। सूर्य कहीं रुक नहीं सकते थे इसलिए हनुमान जी को सारा दिन भगवान सूर्य के रथ के साथ साथ उड़ना पड़ता और भगवान सूर्य उन्हें तरह-तरह की विद्याओं का ज्ञान देते। लेकिन हनुमान जी को ज्ञान देते समय सूर्य के सामने एक दिन धर्मसंकट खड़ा हो गया।
कुल 9 तरह की विद्या में से हनुमान जी को उनके गुरु ने पांच तरह की विद्या तो सिखा दी लेकिन बची चार तरह की विद्या और ज्ञान ऐसे थे जो केवल किसी विवाहित को ही सिखाए जा सकते थे।
हनुमान जी पूरी शिक्षा लेने का प्रण कर चुके थे और इससे कम पर वो मानने को राजी नहीं थे। इधर भगवान सूर्य के सामने संकट था कि वह धर्म के अनुशासन के कारण किसी अविवाहित को कुछ विशेष विद्याएं नहीं सिखला सकते थे।
ऐसी स्थिति में सूर्य देव ने हनुमान जी को विवाह की सलाह दी। और अपने प्रण को पूरा करने के लिए हनुमान जी भी विवाह सूत्र में बंधकर शिक्षा ग्रहण करने को तैयार हो गए। लेकिन हनुमान जी के लिए दुल्हन कौन हो और कहां से वह मिलेगी इसे लेकर सभी चिंतित थे।
सूर्य देव ने अपनी परम तपस्वी और तेजस्वी पुत्री सुवर्चला को हनुमान जी के साथ शादी के लिए तैयार कर लिया। इसके बाद हनुमान जी ने अपनी शिक्षा पूर्ण की और सुवर्चला सदा के लिए अपनी तपस्या में रत हो गई।
इस तरह हनुमान जी भले ही शादी के बंधन में बंध गए हो लेकिन शारीरिक रूप से वे आज भी एक ब्रह्मचारी ही हैं।
पाराशर संहिता में तो लिखा गया है की खुद सूर्यदेव ने इस शादी पर यह कहा की – यह शादी ब्रह्मांड के कल्याण के लिए ही हुई है और इससे हनुमान जी का ब्रह्मचर्य भी प्रभावित नहीं हुआ।
जय बजरंगबली की
जय सिया राम मानस अमृत
।। १० ।।
शनि देव की आरती
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी। सूरज के पुत्र प्रभु, छाया महतारी।। जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी। श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजाधारी। नीलांबर धार नाथ गज की असवारी।। जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी किरीट मुकुट शीश सहज द्विपत है लीलारी। मुक्तक की माल गले शोभित बलिहारी।। जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी। मोदक मिष्ठान पान चढ़त है सुपारी। लोहा, तिल, तेल, उड़द महिषी अति प्यारी।। जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी देव दनुज ऋषि-मुनि सुरत नर-नारी। विश्वनाथ धरत ध्यान शरण है तुम्हारी।। जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
|| न्याय करते हैं शनिदेव ||
शनि देव को लेकर लोगों में जो भी भ्रान्तियाॅ हो, पर सच्चाई तो यही है मनुष्य द्वारा किए गए पापों का दंड शनिदेव ही देते हैं, इसलिए उनको न्याय का देवता भी कहा गया है। शनि देव की उपासना से कार्यों में आने वाली दिक्कतें खत्म हो जाती है तथा घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। अगर शनि की दशा खराब चल रही है, तो तिल या सरसों का तेल, काले तिल, काली उड़द, नीले लाजवंती के फूल और तेल से बने व्यंजन से शनिदेव की पूजा करें। ईमानदार रहें और जरूरतमंदों की सेवा करें। ऐसा करने से शनिदेव की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। हनुमानजी की पूजा करने से भी शनि भगवान प्रसन्न रहते हैं। शनि देव के कुल नौ सवारी है गिद्ध, घोड़ा, गधा, कुत्ता, शेर, सियार, हाथी, मोर और हिरन। कहते हैं शनि देव जिस वाहन पर सवार होकर जिसके पास भी जाते हैं वह व्यक्ति उसी के हिसाब से फल का उत्तरदाई होता है।
।। ११ ।।
।। महावीर जी की आरती ।।
ओम जय महावीर प्रभु,
स्वामी जय महावीर प्रभु।
जगनायक, सुखदायक, अति गंभीर प्रभु।
ऊँ जय महावीर प्रभु।।
कुंडलपुर में जन्मे, माता त्रिशला के तारे।
पिता सिद्धार्थ राजा, सुर नर हर्षाए।
ऊँ जय महावीर प्रभु।।
दीनानाथ, दयानिधि, हे मंगलकारी,
जगहित, संयमधारा, प्रभु पर उपकारी।
पापाचार मिटाया, सत्पथ दिखलाया।
दया धर्म का झंडा, जग में लहराया।
ऊँ जय महावीर प्रभु।।
अर्जुनमाली गौतमस्वामी श्री चंदनबाला।
पार जगत से बेड़ा इनका कर डाला।
ऊँ जय महावीर प्रभु।।
पावन नाम तिहारा, जग तारण हारा
निशदिन जो नर ध्यावे, कष्ट मिटे सारा।
ऊँ जय महावीर प्रभु।।
करुणासागर तेरी महिमा है न्यारी।
हम सब मिल गुण गावे, चरणन बलिहारी।
ऊँ जय महावीर प्रभु।।
।। महावीर जी का मंत्र ।।
णमो अरिहंताणं।।
णमो सिद्धाणं।।
णमो आयरीयाणं।।
णमो उवज्झायाणं।।
णमो लोए सव्वसाहूणं।।
यह जैन धर्म का परम पवित्र और अनादि मूल मंत्र है। यह महामंत्र समस्त कार्यों को सिद्ध करने वाला और कल्याणकारी अनादि सिद्ध मंत्र है।
।। १२ ।।
।। आरती भारत माता की ।।
आरती भारत माता की, जगत के भाग्य विधाता की।
मुकुटसम हिमगिरिवर सोहे,
चरण को रत्नाकर धोए,
देवता कण-कण में छाए,
वेद के छंद, ज्ञान के कंद, करे आनंद,
सस्यश्यामल ऋषि जननी की,
आरती भारत माता की, जगत के भाग्य विधाता की ||१||
जगत से यह लगती न्यारी,
बनी है इसकी छवि प्यारी,
की दुनिया झूम उठे सारी,
देखकर झलक, झुकी है पलक,
बड़ी है ललक, कृपा बरसे जहां दाता की,
आरती भारत माता की, जगत के भाग्य विधाता की ||२||
पले जहां गुरुकुल भूषण राम, बजाये बंशी जहां घनश्याम,
जहां पग-पग पर तीरथ धाम,
अनेकों पंथ, सहस्त्रो संत, विविध सद्ग्रंथ,
सगुण-साकार जगजननी माता की,
आरती भारत माता की, जगत के भाग्य विधाता की ||३||
गोद गंगा जमुना लहरे,
भगवा फहर-फहर फहरे,
तिरंगा लहर लहर लहरे,
लगे हैं घाव बहुत गहरे,
हुए हैं खंड, करेंगे अखंड,
यत्न कर जीवन पर्यन्त,
पुत्रवत्सल माता की,
आरती भारत माता की, जगत के भाग्य विधाता की ||४||
बढ़ाया संतों ने सम्मान,
किया वीरों ने जीवनदान,
हिंदुत्व में निहित है प्राण,
चलेंगे साथ, हाथ में हाथ, उठाकर माथ,
शपथ गीता-गौमाता की,
आरती भारत माता की, जगत के भाग्य विधाता की ||५||
।। १३ ।।
।। भारत माता की आरती ।।
ओम जय भारत माता, मैया जय भारत माता ।
तुमको निशदिन ध्यावे, तुमसे जीवन पायें
अमित यही नाता ।। ओम जय..............ध्रु०।।
तू लक्ष्मी, दुर्गा, जय जगदम्बे, सरस्वती माता
तुमको जो नित गाये, सुख संपत्ति पाता ।।१।। ओम
उत्तर हिमगिरि मुकुट सुहाये, आए मस्तक पर माता
दक्षिण हिन्दू सागर, यश तेरे खाता ।।२।। ओम
रामकृष्ण और महावीर, बुद्ध, नानक सुत तेरे
वाल्मीकि, रविदास संत सब, गुण गायें तेरे ।।३।। ओम
वैदिक, बौद्ध, जैन और सिख है, सब हिन्दू भ्राता
छूत-अछूत न कोई, यह सच्चा नाता ।।४।। ओम
पुण्य भूमि जय मातृभूमि जय, सब कुछ है तेरा
तन मन धन सब अर्पण, क्या लागे मेरा ।।५।। ओम
भारत मां की आरती, जो कोई नर गाता ।
शक्ति-भक्ति तन-मन में, उत्तम फल पाता ।।६।। ओम
|| भारत माता की जय ||
।। १४ ।।
।। आरती स्वामीनारायण की ।।
जय सद्गुरु स्वामी, जय सद्गुरु स्वामी;
सहजानंद दयालु, बलवंत बहुनामी ।।
जय सद्गुरु स्वामी, जय सद्गुरु स्वामी ।।
चरणसरोज तमारां,वंदुं कर जोड़ी,
चरणे शीश धर्याथी, दुख नाख्यां तोड़ी।
जय सद्गुरु स्वामी, जय सद्गुरु स्वामी ।।
नारायण मुनि त्राता, द्विजकुल तनुधारी,
पामर पतित उध्दार्या, अगणित नरनारी।
जय सद्गुरु स्वामी, जय सद्गुरु स्वामी ।।
नित्य नित्य नौतम लीला, करता अविनाशी,
अड़सठ तीरथ चरणे, कोटी गया काशी।
जय सद्गुरु स्वामी, जय सद्गुरु स्वामी ।।
पुरुषोत्तम प्रगटनुं, जे दर्शन करशे,
कालकर्मथी छूटी, कुटुंब सहित तरसे।
जय सद्गुरु स्वामी, जय सद्गुरु स्वामी ।।
आ अवसर करुणानिधि, करुणा बहु कीधी,
मुक्तानंद कहे मुक्ति, सुगम करी सिद्धि।
जय सद्गुरु स्वामी, जय सद्गुरु स्वामी ।।
।। १५ ।।
।। आरती व्यंकटेश भगवान की ।।
आरती वेंकटपति की कीजै, तन तन मन धन सब तिनको दीजै। वेंकटेश कलयुग के देवा, पावत सब फल जो कर सेवा।। सकल ताप दर्शन से जाए, जो जन एक झलक ले पाए। सेवा को फल तुरतहीं लीजै। आरती वेंकटपति की कीजै ।।
महा विष्णु ने कलि एक बारा, अर्वाचपु धरती पर धारा। सप्ताचल पर कीन्ह निवासा, सुर-नर, मुनि भये उनके दासा। जीवन दुख दरस सो छीजै। आरती वेंकटपति की कीजै।।
सतयुग भरदराज कहलाते, कांची में प्रभु पूजे जाते। त्रेता में रघुनाथ गुसाईं, श्रीरंग में सोवत साईं। तिनको दर्शन हूं कर लीजै। आरती वेंकटपति की कीजै।।
द्वापर में हरी मूरति गाई, जगन्नाथ के नाम पुजाई। सो प्रभु चार जुगन के नाते, किल में बालाजी बन जाते। वेंकट वेंकट नाम कहीजै।
आरती वेंकटपति की कीजै।। वे पद पाप मूल बतलाया, सो काटत वेंकट कहलाया। भगत बटोही स्वामी ऐसा, जो मन भाव लेय मन जैसा। तिनकी इच्छा पूरन कीजै। आरती वेंकटपति की कीजै।।
वेंकटेश आरती जो गावे, करतल गत चारिहु फल पावे। सबके नाथ करो स्वीकार, पत्र-फूल-फल जो कछु बारा। हम पर सदा कृपा कर दीजै। आरती वेंकटपति की कीजै।।
जग में सुंदर है दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम। बोलो राम राम राम, बोलो श्याम श्याम श्याम।।
एक ह्रदय में प्रेम बढ़ावे, एक पाप के ताप मिटावे। दोनों सुख के सागर हैं, दोनों है पूरण काम। चाहे कृष्ण कहो या राम, जग में सुंदर है दो नाम। बोलो राम राम राम, बोलो श्याम श्याम श्याम।।१।।
माखन ब्रिज में एक चुरावे, एक बेर शबरी घर खावे। प्रेम भाव से भरे अनोखे, दोनों के हैं काम। चाहे कृष्ण कहो या राम, जग में सुंदर है दो नाम। बोलो राम राम राम, बोलो श्याम श्याम श्याम।।२।।
एक कंश पापी संहारे, एक दुष्ट रावण को मारे। दोनों दीनों के दुखहर्ता, दोनों बल के धाम। चाहे कृष्ण कहो या राम, जग में सुंदर है दो नाम। बोलो राम राम राम, बोलो श्याम श्याम श्याम।।३।।
एक राधिका के संग साजे, एक जानकी संग विराजे। चाहे सीता राम कहो या बोलो राधे श्याम। चाहे कृष्ण कहो या राम, जग में सुंदर है दो नाम। बोलो राम राम राम, बोलो श्याम श्याम श्याम ।।४।।
दोनों है घट-घट के वासी, दोनों है आनंद प्रकाशी। 'भक्त' सदा गोविंद भजन से, मिलता है विश्राम। चाहे कृष्ण कहो या राम, जग में सुंदर है दो नाम। बोलो राम राम राम, बोलो श्याम श्याम श्याम ।।५।।
।। १८ ।।
।। मंगल भवन अमंगल हारी ।।
मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सो दशरथ अजीर बिहारी।।
जय रघुनंदन जनक किशोरी।
सीता राम मनोहर जोरी।।
गांवहि सुंदरी मंगल गीता। लै लै नाम राम अरु सीता।।
राजा राम जानकी रानी।
आनंद अवधि अवध राजधानी।।
राम कथा शशि किरण समाना। संत चकोर करही जेहि पाना।
यह वर मांगहु कृपा निकेता।
बसहु हृदय श्री अनुज समेता।
दैहिक दैविक भौतिक तापा। रामराज नहीं कबहूं व्यापा।।
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